हिमालय प्रहरी

गोलियों से छलनी हो चुका था शरीर, छूट रहीं थी सांसें और सामने खड़ा था दुश्‍मन, चीते की तरह मारा झपट्टा और फिर…

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यह कहानी ऐसे शूरवीर नायक दिलवर खान की है, जिसने अपने प्राणों ऊपर अपने कर्तव्‍य को रखा. देश की सुरक्षा को सर्वोपर‍ि रखते हुए इस शूरवीर ने अपने प्राणों का सर्वोच्‍च दे दिया.

दरअसल, यह वाकया 23 जुलाई 2024 का है. देर रात इंटेलिजेंस इनपुट मिला कि कुपवाड़ा जिले की लोलाब घाटी पर कुछ आतंकी छिपे हुए हैं.

इन आतंकियों को अंजाम तक पहुंचाने की जिम्‍मेदारी राष्‍ट्रीय राइफल्‍स की 28वीं बटालियन को दी गई. बटालियन की तरफ से त्‍वरित कार्रवाई करते हुए एक एंबुश टीम को लोलाब घाटी की तरफ रवाना कर दिया गया. इसी एंबुश टीम में नालक दिलवर खान भी शामिल थे. लोलाब घाटी के घने जंगलों में दाखिल होने के बाद सर्च ऑपरेशन शुरू किया गया.

घना जंगल और काली रात लगातार नायक दिलवर और उनके साथियों की मुश्किल बढ़ा रहे थे. बावजूद इसके एंबुश टीम आतंकियों की तलाश में लगातार आगे बढ़ रही थी. रात के करीब 11:50 बजे रहे होंगे, नायक दिलवर की दो आतंकियों नजर आ जाते है. एक आतंकी थोड़ी दूरी पर था, जबकि दूसरा दिलवर से चंद कदमों की दूरी पर मौजूद था.

भारतीय जाबांजों को देख बौखलाए आतंकी
दिलवर को समझते देर नहीं गलती कि अगला कदम न केवल उनके लिए, बल्कि उनके साथियों के लिए खतरनाक हो सकता है. लिहाजा, नायक दिलवर ने इशारे से अपने साथियों को रुकने का इशारा किया. इसी बीच, एक आतंकी की निगाह नायक दिलवर पर पड़ जाती है. भारतीय सेना के जाबांजों को इतना करीब देख आतंकी बौखला जाता है.

वह शोर मचाते हुए अपने साथी आतंकियों को आगाह करता है और अपनी ऑटोमैटिक राइफल से एंबुश टीम पर गोलियों की बरसात करना शुरू कर देता है. आतंकियों की तरफ से गोलीबारी शुरू होते ही भारतीय सेना के जाबांज भी जवाबी कार्रवाई शुरू कर देते हैं. जिसके बाद, दोनों तरफ से अधाधुंध गोलियों की बौछार होना शुरू जाती है.

पूरा जंगल गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंजने लगता है. इसी बीच, झाडि़यों की ओट लिए नायक दिलवर को एक आतंकी को खुद के करीब आता दिखता है. नायक दिलवर को लगा कि वह इस आतंकी को जिंदा पकड़ सकते हैं. लेकिन, इस कार्रवाई में एक खतरा था, दोनों तरफ से गोलियों की बारिश के चलते उनकी जान को खतरा हो सकता है.

गोलियों से शरीर छलनी होने के बाद भी जारी रखा मुकाबला
कर्यतव्‍य को जिंदगी से ऊपर रखते हुए उन्‍होंने अपने कदम आगे बढ़ाने का फैसला लिया. गोलियों की बारिश के बीच उन्‍होंने किसी चीते की तरफ आतंकी पर झपट्टा मारा. इस हमले से आतंकी घबरा गया और वह मदद के लिए चिल्‍लाने लगा. आतंकी की आवाज सुनने के बाद दूसरे आतंकी ने नायक दिलवर को निशाना बना बस्‍ट फायर कर दिया.

गोलियां आकर सीधे नायक दिलवर को लगीं. गोली लगने के बावजूद उन्‍होंने हिम्‍मत नहीं खोई और बहादुरी का बेहतरीन उदाहरण पेश करते हुए आतंकी से मुकाबला जारी रखा. इस मुकाबले के बीच उनके जख्‍मों से खून लगातार बहता रहा और शरीर से ताकत जाती रही. बावजूद इसके, नायक दिलवर ने आतंकी से मोर्चा लेना जारी रखा.

यह लड़ाई तब तक जारी रही, जब तक उन्‍होंने न केवल इस आतंकी को, बल्कि उसके साथी को जहन्‍नुम में नहीं पहुंचा दिया. दोनों आतंकियों को अंजाम तक पहुंचाने के बाद नायक दिलवर बेजान होकर जमीन पर गिड़ पड़े और देश के लिए अपने प्राणों का सर्वोच्‍च बलिदान दे गए.

28 वर्ष की उम्र में देश के लिए दिया सर्वोच्‍च बलिदान
राष्‍ट्रीय राइफल्‍स की 28वीं बटालियन की आर्टलरी रजिमेंट में तैनात नायक दिलवर खान को अदम्य साहस और सर्वोच्च स्तर की वीरता का प्रदर्शन करने के लिए कीर्ति चक्र से मरणोपरांत से सम्‍मानित किया गया है. दिलवर खान मूल रूप से हिमाचल प्रदेश के ऊना के रहने वाले हैं. उन्‍होंने महज 28 वर्ष की उम्र में देश के लिए प्राणों का सर्वोच्‍च बलिदान कर दिया.

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