पल भर का गुस्सा कई बार पूरी जिंदगी बर्बाद कर देता है. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के अलाया अपार्टमेंट में रहने वाले आदित्य कपूर के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. आदित्य के कपड़ों का शोरूम था, लेकिन कोरोना में लगे लॉकडाउन की वजह से उसका कारोबार खत्म हो गया.
नौबत ये आई गई कि परिवार चलाने के लिए उसको किसी दूसरे के कपड़े की दुकान पर नौकरी करनी पड़ी. इस वजह से वो अक्सर डिप्रेशन में रहने लगा. कई बार खुदकुशी करके अपनी जिंदगी खत्म करनी चाही, लेकिन हर बार बचता रहा. गम को गलत करने के लिए शराब पीना शुरू कर दिया. नशे में होने की वजह से अक्सर पत्नी से झगड़ा हुआ करता था.
शनिवार देर रात की बात है. आदित्य कपूर हर रोज की तरह नशे में घर पहुंचा. देर होने की वजह से नाराज पत्नी शिवानी कपूर ने दरवाजा नहीं खोला. बहुत कोशिश करने के बाद दरवाजा खुला, तो आदित्य अपनी पत्नी से लड़ने-झगड़ने लगा. दोनों की लड़ाई इस हद तक पहुंच गई कि नाराज आदित्य ने किचन से चाकू लिया और शिवानी के शरीर पर वार करना शुरू कर दिया. इसमें उसकी पीठ और गर्दन पर गंभीर चोट लग गई. वो लहूलुहान होकर वहीं गिर पड़ी. यहां हैरानी की बात ये कि सबकुछ उन दोनों के दो बच्चों की आंखों के सामने हो रहा था. डर और दहशत के मारे बच्चों ने पहले तो कुछ नहीं बोला, लेकिन मां की हत्या होता देख पिता पर टूट पड़े.
दोनों ने बच्चों ने आदित्य को एक कमरे के अंदर करके बाहर से लॉक लगाने कोशिश करने लगे, लेकिन उसने उन्हें धक्का देकर वहां से भाग निकला. बचने के लिए तीसरे फ्लोर से नीचे कूद गया. इस दौरान वो गंभीर रूप से घायल हो गया. उसे मेडिकल कॉलेज के ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया गया है. उधर, उसके बच्चों ने तुरंत पुलिस को कॉल कर दिया. मौके पर पहुंची पुलिस ने शिवानी के शव को पोस्टमार्टम के लिए मेडिकल कॉलेज भेज दिया. इस वक्त आदित्य और शिवानी एक ही अस्पताल में हैं, लेकिन एक की मौत हो चुकी है, दूसरा जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा है. निर्दोष बच्चे स्तब्ध हैं. उनका भविष्य अंधकार में है. सबकुछ पल भर के गुस्से की देन है.
परिवार को बर्बाद होने से बचा सकते थे आदित्य-शिवानी
आज शिवानी और आदित्य का सबकुछ बर्बाद हो चुका है. पूरा परिवार बिखर चुका है. यदि दोनों चाहते तो ऐसी स्थिति आने से बचा सकते थे. सबसे पहले तो आदित्य को अपने कारोबार खत्म होने के बाद भी हार नहीं माननी चाहिए थी. क्या हुआ कि वो किसी दूसरे की दुकान पर काम कर रहा था. धीरे-धीरे करके वो अपनी स्थिति ठीक कर सकता था. लेकिन उसने सकारात्मक होकर दूर की सोचने की बजाए डिप्रेशन में चला गया. पहले खुद को मारने की कोशिश की और अब अपनी पत्नी को ही मार डाला. शिवानी को भी हर रोज के झगड़े को सहना नहीं चाहिए था. वो इस रोकने के लिए काउंसलर या कानून का सहारा ले सकती थी.
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