राजू अनेजा,लालकुआ/ हल्द्वानी। कुमाऊं के लिए जीवनदायिनी मानी जाने वाली गौला नदी के बदलते रुख ने अब लोगो के लिए टेंशन पैदा कर दी है।पहले जो नदी लोगों की प्यास बुझाती थी, खेतों को सींचती थी और खनन उद्योग से रोजगार पैदा करती थी, वही नदी अब मानसून के दौरान आबादी के साथ ही रेलवे ट्रैक, गौला पुल, अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम और लोनिवि की सड़कों के लिए खतरे का सबब बन चुकी है।
गौला नदी की स्थिति गंभीर
सिंचाई विभाग ने नदी के व्यवहार और बहाव के पैटर्न का अध्ययन करने के लिए काठगोदाम बैराज से लेकर रेलवे क्रॉसिंग तक सात किलोमीटर क्षेत्र में टेंडर भी आमंत्रित कर दिए हैं। विभाग के ईई दिनेश रावत ने बताया कि इस हिस्से में गौला नदी सीधी नहीं बल्कि घुमावदार है और पानी लगातार किनारों को काट रहा है। कुछ हिस्सों में मलबा जमा होने से नदी का बहाव और अनिश्चित हो गया है।
पिछले नुकसान का ब्योरा
पिछले पांच सालों में नदी के उग्र रूप ने भारी नुकसान पहुंचाया है। अक्टूबर 2021 में रेलवे ट्रैक और गौला पुल को नुकसान हुआ। 2024 में पुल की एप्रोच रोड ध्वस्त हो गई और लोनिवि की 100 मीटर सड़क का आधा हिस्सा नदी में समा गया। पिछले साल काठगोदाम में नदी किनारे बने दो घर पानी में बह गए थे, वहीं इस बार दो और घर जमींदोज कर दिए गए।
प्रस्तावित चिड़ियाघर पर भी असर
सिर्फ आबादी और सड़कों तक ही नहीं, प्रस्तावित चिड़ियाघर के लिए सुरक्षित रखी गई वनभूमि का कुछ हिस्सा भी नदी में बह गया है। नदी की बदलती रफ्तार और कटाव ने स्थानीय प्रशासन और वन विभाग की चिंता बढ़ा दी है।
अध्ययन और भविष्य की योजना
सिंचाई विभाग का कहना है कि अध्ययन के बाद ही नदी के बहाव को नियंत्रित करने और भविष्य में आबादी एवं सरकारी संपत्ति को बचाने के लिए ठोस कदम उठाए जा सकेंगे। इसके साथ ही यह तय किया जाएगा कि भविष्य में इस जिम्मेदारी के लिए कौन-सी संस्था—सरकारी या निजी—संपूर्ण निगरानी और उपायों के लिए जिम्मेदार होगी।
खतरे की घंटी
गौला नदी की बदलती रफ्तार और मानसून में उग्र रूप ने अब प्रशासन और स्थानीय लोगों की नींद उड़ा दी है। सवाल यही है कि क्या कुमाऊं की यह जीवनदायिनी नदी अपनी पुरानी छवि में लौट पाएगी या फिर खतरे के बादल लगातार मंडराएंगे?
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