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उत्तराखंड पंचायत चुनाव पर हाईकोर्ट की अहम टिप्पणी: चुनाव चिह्न आवंटन से पहले बैलेट पेपर छपने पर उठाया सवाल

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नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने प्रदेश में चल रहे त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को लेकर एक अहम टिप्पणी की है। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी नरेंदर और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने मौखिक तौर पर राज्य निर्वाचन आयोग से पूछा कि जब चुनाव चिह्न आवंटन की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है और कई याचिकाएं विचाराधीन हैं, तो पहले ही बैलेट पेपर कैसे छापे जा सकते हैं?


 

हाईकोर्ट में दर्जनभर याचिकाएं लंबित

 

उत्तराखंड में पंचायत चुनाव को लेकर एक दर्जन से अधिक याचिकाएं हाईकोर्ट पहुँच चुकी हैं। शुक्रवार को नामांकन खारिज किए जाने को चुनौती देती एक याचिका पर सुनवाई के दौरान, हाईकोर्ट ने राज्य निर्वाचन आयोग से पूछा कि क्या चुनाव चिह्न आवंटित हो गए हैं?

राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से बताया गया कि नामांकन पत्रों की स्क्रूटनी हो चुकी है और जो फॉर्म पंचायती राज एक्ट के विरुद्ध थे, उन्हें रिटर्निंग अधिकारी ने निरस्त कर दिया है। आयोग ने यह भी बताया कि बैलेट पेपर छपने के लिए प्रिंटिंग प्रेस भेज दिए गए हैं।


 

आयोग के जवाब पर कोर्ट का सवाल

 

इस पर हाईकोर्ट ने सवाल उठाया और कहा कि चुनाव चिह्न आवंटन की प्रक्रिया समाप्त होने से पहले बैलेट पेपर कैसे छापे जा सकते हैं।

आयोग की तरफ से बताया गया कि प्रत्याशियों को उनके नाम के पहले अंग्रेजी अक्षर के आधार पर चुनाव चिह्न बांटे गए हैं। खंडपीठ ने इस पर भी सवाल उठाया और कहा कि पंचायती राज एक्ट में स्पष्ट है कि नामांकन पत्र सही पाए जाने के बाद चुनाव लड़ने के योग्य माने गए उम्मीदवार को उसकी पसंद के आधार पर चुनाव चिह्न आवंटित किया जाएगा। कोर्ट ने आयोग की इस जल्दबाजी पर सवाल उठाते हुए कहा कि बैलेट पेपर छापने में इतनी जल्दबाजी क्यों की गई कि उम्मीदवार किस चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ना चाहता है, उसकी पसंद का ख्याल तक नहीं रखा गया।

हाईकोर्ट की यह टिप्पणी पंचायत चुनाव की प्रक्रिया की पारदर्शिता और नियमों के पालन पर महत्वपूर्ण सवाल खड़े करती है। अब देखना होगा कि इस मामले में आगे क्या कानूनी और प्रशासनिक कार्रवाई होती है।


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