इस्लामिक कैलेंडर के 12 महीने में नौवें महीने को सबसे पवित्र और खास माना जाता है. इस्लामिक कैलेंडर का नौवां महीना ‘रमजान’ होता है. इस पूरे महीने मुसलमान सुबह से शाम (सूर्योदय से सूर्यास्त) तक उपवास रखते हैं. इसे ही रोजा कहा जाता है. रोजा इस्लाम धर्म के 5 फर्ज में एक है. इसलिए रोजा रखना हर मुसलमान का फर्ज है. रोजा का मकसद एक तरह से खुद को अल्लाह के करीब लाना है.
रमजान 2024 का पहला रोजा कब
शाबान महीने (इस्लामिक कैलेंडर का आठवां महीना) के आखिरी दिन चांद का दीदार होने के बाद ही रमजान के सही तारीख का पता चलता है. हालांकि अधिक संभावना है कि रमजान की शुरुआत 11 मार्च से हो सकती है. अगर 11 मार्च को चांद नजर आता है तो 12 मार्च को पहला रोजा रखा जाएगा. यानी चांद नजर आने के अगले सुबह से रोजा रखने की शुरुआत हो जाती है. इस साल पहले रोजे की सहरी सुबह 5 बजकर 04 मिनट पर की जाएगी और इफ्तार शाम 06 बजकर 23 मिनट पर होगा. ऐसे में इस साल पहला रोजा 13 घंटे 19 मिनट का होगा. वहीं आखिरी रोजा 14 घंटे 14 मिनट का होगा.
रमजान में रोजा का महत्व
रमजान के दौरान मुसलमान रोजा रखते हैं और अल्लाह की इबादत में अधिक से अधिक समय बिताते हैं. इस्लाम के पवित्र कुआन (अल-बकरह-184) में अल्लाह का आदेश है कि ‘व अन तसूमू खयरुल्लकुम इन कुन्तुम तअलमून’. यानी रोजा रखना तुम्हारे लिए अधिक भला है अगर तुम जानो. अरबी जबान में रोजा को सौम या स्याम कहा गया है, जिसका अर्थ होता है संयम. इस तरह से रोजा सब्र की सीख देता है. लेकिन रोजा में केवल भूखे रहना ही सब्र नहीं है. इस दौरान नीयत भी साफ होनी चाहिए, तभी रोजा मुकम्मल होता है. सामाजिक नजरिए से जहां रोजा इंसान की अच्छाई है तो वहीं मजहबी नजरिए से यह रूह की सफाई है. वैसे तो रमजान में पूरे 29 या 30 दिनों का रोजा रखा जाता है. लेकिन पहला रोजा ईमान की पहल है.
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