लालकुआं: निकाय चुनाव का चुनाव प्रचार जोर शोर से चल रहा है। प्रत्याशी वादों की पोटली लेकर मतदाताओं के दर पर पहुंच कर उन्हें हसीन सपने दिखा रहे है। वोट की राजनीति का यह सिलसिला पिछले कई नगर निकाय, विधानसभा व लोक सभा चुनावों से चल रहा है। लेकिन अधिकतर समस्या आज भी जस की तस है।
लालकुआं नगर पंचायत की अगर बात करे तो मुक्तिधाम की दुर्दशा बड़ी समस्या उभर के सामने आई है। बसासत के समय से ही लालकुआं, बिंदुखत्ता व आसपास के लोग अपने स्वजनों का दाह संस्कार नगर से दो किमी दूर हाइवे के किनारे स्थित मुक्तिधाम में करते है। नाथ, गिरी, पुरी जाति के लोग भी यही पर समाधि बनाते है। वर्तमान में यहां पर एक टिन शेड, प्रतीक्षालय, हैंडपंप और केयर टेकर के लिए एक रूम स्थित है। सुरक्षा के कोई इंतजाम नही होने के कारण जंगली जानवर समय समय पर इन्हें क्षतिग्रस्त करते रहते हैं। इसके अलावा हमेशा जलभराव के चलते आने जाने वाले को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। बरसात में यह समस्या और अधिक बढ़ जाती है। यहां पर दाह संस्कार के लिए लकड़ी की भी कोई व्यवस्था नहीं है। केयरटेकर नही होने से यह स्थल जुआरी व नशेडियों का अड्डा बन गया है। मुक्तिधाम के वन भूमि पर स्थित होने के कारण कई सरकारी योजनाओं द्वारा यहां पर सुविधा देना संभव नहीं हो पा रहा है।
इधर वर्ष 2021 में ईश्वर चंद्र वर्मा की जनहित याचिका के बाद माननीय उच्च न्यायालय द्वारा द्वारा नगर निकायों में विद्युत शवदाह गृह व गैस से संचालित शवदाह गृह बनाने के निर्देश दिए थे। जिसके बाद नगर पंचायत के अधिशासी अधिकारी राहुल सिंह द्वारा मुक्तिधाम के जीर्णोद्धार और विद्युत व गैस शवदाह गृह बनाने के लिए बोर्ड की बैठक प्रस्ताव पास कर 0.88 हेक्टेयर वन भूमि हस्तान्तरण के लिए वन विभाग से पत्राचार किया। जिसमें नाथ, गिरी, पुरी के लिए समाधि स्थल, आगन्तुको के लिए प्रतीक्षालय, पार्किंग, पास्परिक शहदाह शैड, विद्युत शवदाह गृह, केयर टेकर रूम, सार्वजनिक शौचालय बनाने का प्रस्ताव रखा गया। साथ ही आवारा जानवरों के दफनाने के लिए भी इसके पास ही भूमि प्रस्तावित की गई है। इसके अलावा वन अधिकार समिति बिंदुखत्ता द्वारा भी मुक्तिधाम के लिए भूमि उपलब्ध कराने के लिए जिलाधिकारी को पत्र भेजा गया। लेकिन आज तक नगर पंचायत को भूमि हस्तांतरित नहीं हो सकी है। जिस कारण वहां की स्थित काफी दयनीय है। जिसकारण लोग गंदगी व अव्यवस्थाओं के बीच अपने सगे संबंधियों का अंतिम संस्कार करने को मजबूर है। इधर नगर पंचायत व अन्य चुनावों में हर बार इस मुद्दे को जोर शोर से उठाया जाता है। लेकिन चुनाव जीतने के बाद इन मुद्दों को फिर से पिटारे में बंद कर दिया जाता है। जिसके चलते क्षेत्रवासी अव्यवस्थाओं के बीच अपने स्वजनों का अंतिम संस्कार करने को मजबूर है।