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बनारस में नरेंद्र मोदी की जीत का अंतर इतना कम कैसे हुआ, क्या कह रहे हैं बनारसी

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बनारस में नरेंद्र मोदी की जीत का अंतर महज़ एक लाख 52 हज़ार पर सिमट जाने की चर्चा थम नहीं रही है.

2019 में मोदी बनारस से लगभग चार लाख 80 हज़ार मतों के अंतर से जीते थे.

कई लोग मानते हैं कि इस बार अगर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी बनारस में और अधिक गंभीरता से चुनाव लड़तीं तो मोदी हार भी सकते थे.

ख़ुद राहुल गांधी ने भी मंगलवार को रायबरेली में कहा कि अगर बनारस में नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ उनकी बहन प्रियंका गांधी होतीं तो वह चुनाव दो से तीन लाख के अंतर से जीत जातीं.

यानी कांग्रेस भी इस बात को मान रही है कि उसने बनारस में मोदी के कद की तुलना में ठीक उम्मीदवार नहीं उतारा था.

बनारस में कांग्रेस ने मोदी के ख़िलाफ़ 2014, 2019 और 2024 में तीनों बार अजय राय को उतारा. ज़ाहिर है तीनों बार हार मिली है.

अजय राय 2019 और 2014 में तो बुरी तरह से हारे थे. इसके अलावा, अजय राय 2009 में भी बनारस से समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े थे और हार मिली थी.

बनारस में मोदी की जीत का अंतर कैसे बिगड़ा?

गौरीशंकर निषाद बताते हैं कि पिछले कुछ सालों में बनारस के मल्लाहों की कमाई पर सुनियोजित तरीक़े से चोट की गई है.

निषाद कहते हैं, ”नरेंद्र मोदी 2014 में गुजरात से बनारस आए तो हमने बहुत उत्साह से उनका साथ दिया था. हमें लगा था कि चीज़ें बेहतर होंगी. लेकिन सच्चाई अब सामने आ रही है कि उनका एजेंडा क्या था. 2019 में भी हमने उम्मीद नहीं छोड़ी और उन्हीं को वोट किया था लेकिन 2024 में कांग्रेस को वोट किया और मोदी से अब कोई उम्मीद नहीं है.”

गौरीशंकर निषाद कहते हैं, ”गंगा नदी में ये क्रूज चलवा रहे हैं. इसकी ऑनलाइन बुकिंग हो रही है. ऑनलाइन बुकिंग से सरकार को टैक्स मिल रहा है. जब से क्रूज आया है, तब से हमारी कमाई न के बराबर रह गई है. भला हम क्रूज से मुक़ाबला कहाँ से कर पाएंगे.”

2018 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बनारस की गंगा नदी में फाइव स्टार लग्ज़री क्रूज़ लॉन्च किया था. इस क्रूज से गंगा की 82 घाटों की सैर होती है और प्रति व्यक्ति 750 रुपए का टिकट लगता है. 30 मीटर लंबे इस डबल डेकर क्रूज़ में एक साथ 110 लोग बैठ सकते हैं.

मल्लाहों की नाराज़गी

गौरी शंकर निषाद कहते हैं, ”बात केवल क्रूज की नहीं है. मणिकर्णिका घाट से इन्होंने बाबा विश्वनाथ मंदिर तक कॉरिडोर बनाया. हमलोग मणिकर्णिका घाट पर अपनी दुकान लगाकर मछली बेचते थे. कॉरिडोर बनने लगा तो इन्होंने कहा कि अपनी दुकानें हटा लो और कॉरोडिर बनने के बाद सबको एक-एक नई दुकान मिलेगी.”

”जब दुकान बन गई तो हमसे कहा कि एक दुकान के लिए 25 लाख रुपए देने होंगे. भला हम ग़रीब 25 लाख रुपए कहाँ से लाते. मणिकर्णिका घाट से ग़रीबों को इस तरह बेदख़ल किया गया. अब आप मणिकर्णिका घाट पर जाइए तो अमूल डेयरी का बूथ है, ब्रैंडेड शोरूम हैं. मोदी जी को बनारस में भी गुजरात का ही भला चाहिए. अमूल गुजरात की डेयरी है. यूपी की पराग डेयरी कहाँ गई? क्रूज भी गुजरात से ही मंगवाए गए हैं.”

बीजेपी के काशी क्षेत्र के अध्यक्ष दिलीप पटेल कहते हैं, ”विकास का काम होगा तो कुछ लोगों को तकलीफ़ हो सकती है लेकिन हम विकास के काम को लंबे समय तक रोक नहीं सकते. जिनकी दुकान वैध थी, उन्हें मुआवजा भी मिला है.”

अमित सहनी भी गंगा नदी में नाव चलाते हैं. गंगा नदी में क्रूज चलाने से वह भी नाराज़ हैं. अमित कहते हैं, ”जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आते हैं तो हमलोग की नाव गंगा नदी में नहीं चलने दी जाती है जबकि क्रूज चलता रहता है. ऐसा इसलिए है कि क्रूज चलवाने वाले गुजराती हैं.”

नरेंद्र मोदी को लेकर निराशा केवल मल्हाओं तक ही सीमित नहीं है. बुनकर भी खुलकर नरेंद्र मोदी की नीतियों की आलोचना करते हैं.

बुनकरों की नाराज़गी

लक्ष्मीशंकर राजभर पहले पावरलूम मशीन से बनारसी साड़ी बनाते थे लेकिन अब वह पिछले पाँच सालों से रिक्शा चला रहे हैं. ग़रीबी और हाड़तोड़ मेहनत के कारण राजभर 55 की उम्र में 85 साल के लगते हैं.

राजभर कहते हैं, ”बनारसी साड़ी अब सूरत में बन रही है और वहीं से बनकर बनारस में आ रही है. यहां के कारीगर बेकार हो गए. हमारा हुनर जंग खा रहा है और बनारसी साड़ी कभी ब्रैंड के रूप में जानी जाती थी, उसे गुजरातियों ने हड़प लिया.”

जलालीपुरा लाल कुआँ बनारस में बुनकरों का इलाक़ा है. इस इलाक़े की गलियों से गुज़रिए तो घरों में पावरलूम मशीन चलने की आवाज़ अब भी सुनाई देती है.

हालांकि यह आवाज़ अब धीमी पड़ गई है. पारवरलूम मशीनें अब धूल खा रही हैं. जिन घरों में पावरलूम मशीनें चलती थीं, वहाँ अब चाय और कॉफी की दुकानें खुल गई हैं. यहाँ के बुनकर कहते हैं कि साड़ी बनाकर हर दिन 200 रुपए कमाना भी मुश्किल है.

लल्लू अंसारी के घर में चार पावरलूम मशीन चलती थी लेकिन अब वहाँ चाय की दुकान खुल गई है. लल्लू कहते हैं, ”मेरे घर के कई मर्द सूरत चले गए और अब वहीं बनारसी साड़ी बना रहे हैं. आमदनी से ज़्यादा जीएसटी लग रही है. जिस घर में पावरलूम मशीन है, उस घर का कॉमर्शियल टैक्स लगता है. आमदनी ही नहीं है तो टैक्स कहाँ से देंगे. बिजली भी आती-जाती रहती है और इस पर सब्सिडी मिलने की कोई गारंटी नहीं है. घाटे के सौदे में फँसने से ज़्यादा अच्छा यही है कि चलकर सूरत में ही कमा लिया जाए.”

नरेंद्र मोदी जब 2014 में बनारस से चुनाव लड़ने आए तो उन्होंने बुनकरों की स्थिति सुधारने का वादा किया था. मोदी ने 27 जून 2014 को पहली बार टेक्स्टाइल सेक्टर पर रिव्यू मीटिंग बुलाई थी.

मोदी ने नौकरशाहों से कहा था कि हैंडलूम को फैशन से जोड़ने का कोई तरीक़ा निकालें. नौकरशाह कोई तरीक़ा आज तक नहीं निकाल पाए. अब हाल यह है कि बुनकर अब अपने इस हुनर से दूर हो रहे हैं और रिक्शा चलाने के लिए मजबूर हैं.

बनारस में नरेंद्र मोदी की जीत का अंतर कम होने का सवाल बनारस के लोगों से पूछिए तो ज़्यादातर लोग कहते हैं कि रोड और कॉरिडोर से पेट नहीं भरेगा.

बढ़ती महंगाई और बेरोज़गारी को लेकर ग़ुस्सा

बीजेपी विरोधी और बीजेपी समर्थक दोनों इस बात को मानते हैं कि बनारस में इन्फ़्रास्ट्रक्चर पर काम हुआ है.

अब शहर से एयरपोर्ट जाने में 40 मिनट का वक़्त लगता है जबकि पहले जाम के कारण 35 किलोमीटर जाने में दो घंटे का समय लग जाता था.

विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर और घाटों की साफ़-सफ़ाई बढ़ गई है. लेकिन इसके साथ ही लोग पूछते हैं, ”रोज़गार कहाँ है? महंगाई आसमान छू रही है. हर महीने पेपर लीक हो रहा है और पुलिस की मनमानी बढ़ गई है.”

कॉरिडोर के लिए सैकड़ों घर तोड़ने की तैयारी

जयनाराण मिश्र अस्सी घाट पर रहने वाले उन क़रीब 300 लोगों में शामिल हैं, जिनका घर जगन्नाथ कॉरिडोर में जा सकता है. मिश्र कहते हैं, क़रीब 300 लोगों को ज़िला प्रशासन ने बता दिया है कि उनका घर सरकारी ज़मीन पर है.

जिन 300 घरों को तोड़ा जाएगा, उनमें 99 प्रतिशत घर उनके हैं, जो मोदी-मोदी करते रहते हैं.”

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