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नेपाल में राजनीतिक संकट गहराया: ओली का इस्तीफ़ा, अब राजशाही की वापसी की मांग

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नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता अपने चरम पर पहुँच गई है। महीनों से चले आ रहे सरकार विरोधी प्रदर्शनों और हिंसक झड़पों के बीच, प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली को 9 सितंबर 2025 को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। भ्रष्टाचार, बढ़ती बेरोजगारी और सरकार की नाकामी से तंग आकर जनता सड़कों पर उतर आई थी। इस विरोध प्रदर्शन में अब तक लगभग 22 लोगों की मौत हो चुकी है और 200 से अधिक लोग घायल हुए हैं।


 

सोशल मीडिया बैन बना विरोध का हथियार

 

ओली सरकार ने विरोध की आवाज़ दबाने के लिए सोशल मीडिया ऐप्स पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन यह फैसला उल्टा पड़ गया। युवाओं ने इस प्रतिबंध को हथियार बनाकर #BringBackMonarchy और #HinduRashtra जैसे हैशटैग को ट्रेंड कराना शुरू कर दिया। देखते ही देखते, प्रदर्शनकारी संसद, नेपाली कांग्रेस के मुख्यालय और अन्य नेताओं के घरों को निशाना बनाने लगे, जिसमें आगजनी और तोड़फोड़ की घटनाएँ हुईं। पुलिस के लाठीचार्ज और आँसू गैस के गोले भी प्रदर्शनकारियों को नहीं रोक पाए।


 

क्या पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह संभालेंगे गद्दी?

 

ओली के इस्तीफे के बाद, अब हर किसी की नज़र पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह पर टिकी है। 2008 में राजशाही खत्म होने के बाद से वे एक आम नागरिक के तौर पर रह रहे थे, लेकिन पिछले कुछ महीनों में उनकी सार्वजनिक उपस्थिति बढ़ी है। मार्च में जब वे पोखरा से काठमांडू लौटे, तो हजारों राजशाही समर्थकों ने उनका भव्य स्वागत किया। इसके बाद, उन्होंने अपने परिवार के साथ पुराने शाही महल का भी दौरा किया, जिसे राजशाही समर्थकों ने एक बड़ा संकेत माना है। राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) और युवा संगठन इस आंदोलन को हवा दे रहे हैं, उनका मानना है कि 17 साल में 14 सरकारें बदलने के बावजूद देश को स्थिरता नहीं मिल पाई है।


 

आगे क्या? चुनाव, राजशाही या अराजकता?

 

ओली के इस्तीफे के बाद फिलहाल सेना ने कानून-व्यवस्था की कमान संभाली है, जिसे कुछ लोग राजशाही के समर्थन के संकेत के रूप में देख रहे हैं। हालांकि, नेपाल का संविधान राजशाही की अनुमति नहीं देता है, और नया संविधान बनाना एक बड़ी चुनौती है। अगला चुनाव 2027 में है, लेकिन जनता जल्द चुनाव की मांग कर रही है। माओवादी और चीन का प्रभाव अभी भी एक बड़ी बाधा है। भले ही ज्ञानेंद्र शाह ने औपचारिक रूप से कोई बयान नहीं दिया है, लेकिन उनके समर्थक कहते हैं, “वो ही देश बचा सकते हैं।” यह देखना बाकी है कि नेपाल एक बार फिर राजशाही की ओर मुड़ेगा या कोई नई सरकार बनेगी।

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