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पीएम मोदी भी लेंगे सलाह! जानें अब कितने ताकतवर हुए राहुल गांधी, सैलरी भी कई गुना बढ़ गई

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लोकसभा चुनाव के नतीजों ने बहुत कुछ बदलकर रख दिया है. राहुल गांधी के तौर पर पूरे दस सालों बाद सदन के भीतर विपक्ष को अपना सेनापति मिला है. 2014 में सत्ता से बेदखल होने के बाद कांग्रेस को नेता प्रतिपक्ष का पद मिला है, क्योंकि पिछले दस सालों से पार्टी के पास इस पद को पाने के लिए जरूरी 54 सीटें तक नहीं थीं.

इस बार कांग्रेस के पास लोकसभा में 99 सीटें हैं और इसीलिए 20 साल लंबे राजनीतिक करियर में राहुल गांधी को पहली बार संवैधानिक पद मिला है.

हालांकि, राहुल के लिए आगे का सफर आसान नहीं होगा. विपक्ष के सेनापति के तौर पर और संवैधानिक पद पर होने की वजह से राहुल गांधी को कई जिम्मेदारियां निभानी हैं. ऐसे में आइए इस बात को समझने की कोशिश करते हैं कि नेता विपक्ष बनने के बाद राहुल गांधी और सत्ता पक्ष के लिए सदन कितना बदल जाएगा. राहुल गांधी को नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद किस तरह की शक्तियां मिलने वाली हैं. वह किन फैसलों में अपनी भूमिका निभाने वाले हैं और उन्हें किस तरह की सुविधाएं दी जाएंगी.

राहुल गांधी के पास क्या शक्तियां होंगी?

कांग्रेस नेता राहुल गांधी को नेता विपक्ष बनने पर बधाई मिल रही है, लेकिन विपक्ष के नेता ये भी कह रहे हैं कि पूरे गठबंधन के हितों का ध्यान रखा जाए. नेता प्रतिपक्ष न सिर्फ अपनी पार्टी को बल्कि पूरे विपक्ष का नेतृत्व करता है. ऐसे में आइए जानते हैं कि राहुल को क्या शक्तियां मिलने वाली हैं.

राहुल गांधी को क्या सुविधाएं मिलेंगी?

नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद राहुल को पद भी मिला है और उनका कद भी बढ़ गया है. नेता विपक्ष के तौर पर राहुल गांधी को कई अधिकार और सुविधाएं मिलेंगी. आइए जानते हैं कि उन्हें किस तरह की सुविधाएं मिलने वाली हैं.

बदल जाएगी राहुल गांधी की छवि

नेता विपक्ष के तौर पर राहुल गांधी की पुरानी छवि टूट जाएगी और वो एक नई छवि को गढ़ते नजर आएंगे. साल 2004 में जब राहुल गांधी ने पहली बार चुनावी राजनीति में दस्तक दी थी. 2004 में राहुल ने अमेठी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था और जीत दर्ज की थी. राहुल का नेता प्रतिपक्ष बनना बेहद खास है क्योंकि वह जब से चुनावी राजनीति में आए वो कोई पद लेने से बचते रहे. यहां तक कि पार्टी प्रमुख के पद से भी उन्होंने इस्तीफा दे दिया था.

2004 से 2014 तक कांग्रेस की सत्ता रही लेकिन राहुल ने कोई मंत्री पद नहीं लिया. उन पर कैबिनेट पद के लिए दबाव भी था, लेकिन फिर भी उन्होंने मना कर दिया था. 2014 में कांग्रेस जब सत्ता से बाहर हुई तो नेता प्रतिपक्ष बनाने लायक सीटें भी हासिल नहीं कर पाई थी.

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