उत्तराखंड के तराई क्षेत्र में 1981 के बाद 40 साल की अवधि में वर्षा में उल्लेखनीय कमी और तापमान स्वरूप में बदलाव दर्ज किया गया है और इससे क्षेत्र में फसलों की उपज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.
यह बात एक नए शोध में सामने आयी है. उत्तराखंड में जी बी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध से पता चला कि क्षेत्र में न्यूनतम तापमान में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जबकि अधिकतम तापमान में कोई खास बदलाव नहीं हुआ है.
पिछले सप्ताह भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के ‘मौसम जर्नल’ में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, इस बदलाव के कारण फसलें समय से पहले परिपक्व हो सकती हैं, जिससे पैदावार कम हो सकती है. अध्ययन में कहा गया है, ”उत्तराखंड के तराई क्षेत्र में 40 वर्षों में वर्षा, धूप के घंटे और वाष्पीकरण में वास्तविक कमी क्रमश: लगभग 58.621 मिलीमीटर, 1.673 घंटे और 1.1 मिलीमीटर है.’
जलवायु कारकों में कमी के कारण बारिश कम हो रही
वैज्ञानिकों ने कहा कि जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण, वैश्विक तापमान में वृद्धि, प्रदूषण में बढ़ोतरी और बादल वाले दिनों की संख्या में वृद्धि आदि कारण इन जलवायु कारकों में कमी के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं. धूप के घंटों में गिरावट अधिक बादल वाले दिनों और बढ़ते प्रदूषण से जुड़ी है. धूप के घंटों में कमी और वाष्पीकरण सामूहिक रूप से संघनन प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं, जिससे क्षेत्र में वर्षा की मात्रा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.