हर गली-मोहल्ला बना स्टैंड, चौराहे बने जाम पॉइंट
ई-रिक्शा चालकों को न कोई दिशा निर्धारित है और न ही कोई नियंत्रण। जो जहां चाहता है, वहीं सवारी भरता और उतारता है। स्कूल, अस्पताल, बाज़ार—हर जगह अतिक्रमण की तरह खड़े ये रिक्शा सड़कों की रफ्तार को जकड़े हुए हैं।
फाइलें घूमती रहीं, रिक्शा दौड़ते रहे
पांच साल पहले बनी योजना कि काशीपुर को चार जोनों में बांटा जाएगा और रंगों के हिसाब से रूट तय किए जाएंगे—वह महज बैठक तक सीमित रह गई।
कोविड के बाद न योजना पर चर्चा हुई, न कोई बैठक। फाइलें धूल खा रही हैं और शहर ट्रैफिक से कराह रहा है।
तीन विभाग, एक भी जवाबदेह नहीं
- परिवहन विभाग: “हमारा काम नहीं”
- यातायात पुलिस: “निगम देखे”
- नगर निगम: “यूनियन नाराज न हो जाए”
तीनों विभाग जिम्मेदारी पास करने की रेस में हैं। और जनता? वह रोज जाम में फंसकर समय, पैसा और धैर्य गंवा रही है।
न किराया तय, न संख्या नियंत्रित
शहर में तीन हजार से ज्यादा ई-रिक्शा बेधड़क चल रहे हैं। उनमें से कई यूपी सीमा से घुसपैठ कर यहां अवैध रूप से सवारी ढो रहे हैं।
किराया?—जो मन में आया, वो ले लिया। न कोई रसीद, न कोई रेट कार्ड। जनता को लूटने की खुली छूट है।
हाईकोर्ट की सख्ती, सरकार की सुस्ती
हाईकोर्ट ने 16 जून को दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए तीन महीने के अंदर नीति तय करने का आदेश दिया है।
लेकिन काशीपुर की जनता भलीभांति जानती है—यहां आदेश आते हैं, मगर अमल अक्सर रास्ता भटक जाता है।
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