तीर्थ नगरी में स्थित सिद्धपीठ कमलेश्वर महादेव मंदिर में बैकुंठ चतुर्दशी के अवसर पर मंगलवार देर शाम को ‘खड़ा दीया’ अनुष्ठान का आयोजन हुआ। संतान प्राप्ति की कामना के साथ 191 निसंतान दंपती इस कठिन अनुष्ठान में शामिल हुए।
✨ अनुष्ठान का शुभारंभ और परंपरा
- आरंभ: मंगलवार को गोधूलि बेला में शाम 5 बजकर 30 मिनट पर मंदिर के महंत आशुतोष पुरी ने अनुष्ठान में शामिल दंपतियों के हाथों में रखे दीपक प्रज्वलित कर अनुष्ठान का शुभारंभ किया।
- अनुष्ठान विधि:
- महिलाओं की कमर में एक कपड़े में जुड़वा नींबू, श्रीफल, पंचमेवा और चावल की पोटली बांधी गई।
- सभी दंपतियों ने पूरी रात जलते दीपक हाथ में लिए भगवान शिव की आराधना की। इस दौरान महिलाओं ने भजन-कीर्तन आरंभ किए और शिव के जयकारे रातभर गूंजते रहे।
- समापन: बुधवार तड़के स्नान के बाद महंत द्वारा पूजा संपन्न कराई जाएगी और श्रीफल देकर व्रत तुड़वाया जाएगा।
- मान्यता: ऐसी मान्यता है कि यह ‘खड़ा दीया’ अनुष्ठान करने से संतान प्राप्ति होती है।
🌍 देश-विदेश से श्रद्धालु
इस वर्ष अनुष्ठान के लिए 235 से अधिक दंपतियों ने पंजीकरण करवाया था। इसमें उत्तराखंड के अलावा, अमेरिका, नोएडा, गाजियाबाद, दिल्ली, बेंगलुरु, चंडीगढ़, महाराष्ट्र, राजस्थान सहित विभिन्न राज्यों और शहरों से दंपती शामिल हुए।
- अमेरिका से परिवार: मूल रूप से दिल्ली की रहने वाली राजश्री जैन अपने पति और बेटी के साथ अमेरिका से अनुष्ठान में शामिल होने पहुँचीं। उनकी कामना है कि उनकी विवाहित बेटी को संतान प्राप्ति का सुख मिले। उन्होंने बताया कि उनकी एक सहेली को 28 साल पहले इसी अनुष्ठान से संतान प्राप्त हुई थी।
🌟 शिवार्पण की परंपरा
- संतान प्राप्ति के बाद वापसी: पूर्व में अनुष्ठान के बाद संतान प्राप्त करने वाले 25 दंपती भी बैकुंठ चतुर्दशी के अवसर पर मंदिर पहुँचे।
- शिवार्पण: इन दंपतियों ने अपने बच्चों को महंत की गोद में रखकर शिवार्पण किया।
- महंत आशुतोष पुरी ने बताया: शिवार्पण के बाद महंत द्वारा मंत्रोच्चार के साथ बच्चे को स्वजन को सौंप दिया जाता है और अनुष्ठान के समय दिया गया श्रीफल वापस ले लिया जाता है।
👥 भक्तों की भारी भीड़
‘खड़े दिए’ अनुष्ठान के अवसर पर कमलेश्वर महादेव मंदिर में दर्शन के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुँचे। आलम यह रहा कि मंदिर परिसर से 500 मीटर तक लंबी कतार लगी रही। भीड़ नियंत्रण के लिए पुलिस प्रशासन द्वारा प्रवेश व निकासी के अलग-अलग मार्ग बनाकर विशेष व्यवस्था की गई थी।
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