![](data:image/svg+xml;base64,PHN2ZyBoZWlnaHQ9Ijc2OCIgd2lkdGg9IjQ0NSIgeG1sbnM9Imh0dHA6Ly93d3cudzMub3JnLzIwMDAvc3ZnIiB2ZXJzaW9uPSIxLjEiLz4=)
राजू अनेजा ,लाल कुआं।प्रयागराज के संगम तट पर दो दिवसीय ज्ञान महाकुंभ में किशनपुर सकुलिया मोटाहल्दू निवासी मनीषा पाण्डे ने “उत्तराखंड के पवित्र उपवन : जैव विविधता संरक्षण, पर्यावरण स्थिरता और उनके महत्व” विषय पर व्याख्यान दिया।उन्होंने बताया कि पवित्र उपवन (सक्रेड ग्रोव) क्या होते हैं, किसी स्थान को पवित्र उपवन कैसे घोषित किया जाता है, इसकी उपयोगिता क्या है और यह जैव विविधता संरक्षण, सांस्कृतिक धरोहर तथा पारिस्थितिक सेवाओं में कैसे योगदान देता है। साथ ही, उन्होंने इसके पारिस्थितिक महत्व को समझाते हुए बताया कि यह कार्बन अवशोषण (सीक्वेस्ट्रेशन) में कैसे सहायक होता है और जलवायु परिवर्तन को किस प्रकार नियंत्रित करता है।अपने व्याख्यान में उन्होंने यह भी बताया कि जिस प्रकार गाँवों, कस्बों या मैदानों के बाहरी इलाकों में स्थित वनस्पति या वन क्षेत्रों के अछूते और संरक्षित हिस्सों को समुदायों द्वारा स्थानीय लोक देवताओं या पूर्वजों की आत्माओं को समर्पित कर सुरक्षित रखा जाता है, उसी प्रकार उत्तराखंड के पवित्र उपवन भी पर्यावरण संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। स्थानीय लोगों की यह मान्यता है कि ये वन देवताओं के हैं और यदि इन्हें नष्ट किया गया तो देवता अप्रसन्न हो सकते हैं। यही विश्वास इन छोटे-छोटे जंगलों की रक्षा करने में सहायक सिद्ध होता है।उन्होंने यह भी कहा कि उत्तराखंड की प्रमुख वनस्पतियों (की-स्टोन प्रजातियों) के संरक्षण के लिए कठोर कानूनों की आवश्यकता है, अन्यथा आने वाली पीढ़ियों के लिए हम इन्हें सुरक्षित नहीं रख पाएंगे।मनीषा पाण्डे पिछले चार वर्षों से कार्बन भंडारण, पुनरुत्थान (रीजनरेशन) और पारिस्थितिक सेवाओं पर प्रो. एस. पी. जोशी के निर्देशन में सेंट्रल यूनिवर्सिटी, उत्तराखंड में शोध कर रही हैं। इसके अलावा, उन्होंने पिछले वर्ष मुरादाबाद के सिविल लाइन क्षेत्र में “अटल पथ” पर प्रो. अनामिका त्रिपाठी के निर्देशन में कार्बन भंडारणऔर वृक्षों की आयु के आकलन पर कार्य किया था।यह कार्यक्रम पर्यावरण संरक्षण गतिविधि और शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के संयुक्त तत्वावधान में प्रयागराज में आयोजित किया गया था, जिसमें विभिन्न स्थानों से शोधार्थी सम्मिलित हुए थे।