कवि गोकुलानंद जोशी अपनी कविता “गुरुओं का सत्कार” के माध्यम से शिक्षक दिवस के महत्व और समाज में शिक्षकों की वास्तविक स्थिति पर गहरा विचार प्रस्तुत करते हैं। यह कविता इस बात पर सवाल उठाती है कि क्यों हम केवल साल में एक दिन, 5 सितंबर को ही शिक्षकों का सम्मान करते हैं, जबकि अन्य दिनों में उनके प्रति वह आदर नहीं दिखाई देता है।
शिक्षक दिवस का महत्व
कवि याद दिलाते हैं कि 5 सितंबर का दिन हमारे दूसरे राष्ट्रपति, महान दार्शनिक और आदर्श शिक्षक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। यह दिन शिक्षकों के प्रति आभार व्यक्त करने और उनके योगदान को याद करने का अवसर है। कविता में इस दिन भव्य उपहार देने की बात कही गई है, लेकिन साथ ही यह सवाल भी उठाया गया है कि बाकी दिनों में यह सम्मान कहाँ चला जाता है।
कविता
आया है शिक्षकों का यह दिन,
पूरे भारत में मनाया जाएगा यह दिन।
मनाया जाता है हर साल 5 सितंबर को,
गुरुओं का यह पावन दिवस—
कैसे भूलें इस दिन को?
इस दिन जन्मे थे भारत के द्वितीय राष्ट्रपति,
महान दार्शनिक, आदर्श गुरु—डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन।
इसी कारण मानते हैं जोर-शोर से 5 सितंबर को शिक्षक दिवस।
हर एक गुरु को देते हैं हम भव्य उपहार,
पर बाकी दिनों में क्यों भूल जाते हैं उनका सत्कार?
क्यों नहीं दिखता हर दिन उनके प्रति सम्मान,
क्यों होता है उनके साथ अपमान?
गुरु है देवता से भी बढ़कर,
जिसने गुरु का किया आदर—
वह माता-पिता का भी करेगा सम्मान।
यह दिखाता है हमारा व्यवहार।
तो फिर क्यों केवल 5 सितंबर को ही इतना दिखलावा?
बाकी दिनों में क्यों नहीं मिलता उन्हें वह मान?
हर दिन होना चाहिए गुरु का सत्कार,
यही है सच्चा शिक्षक दिवस का त्योहार।
गुरु का सच्चा सम्मान
कविता का मुख्य संदेश यह है कि गुरु का स्थान देवता से भी बढ़कर है। जो व्यक्ति अपने गुरु का आदर करता है, वह अपने माता-पिता का भी सम्मान करेगा। कवि कहते हैं कि सच्चा शिक्षक दिवस तब होगा, जब यह सम्मान केवल एक दिन का दिखावा न होकर, हमारे हर दिन के व्यवहार में दिखाई देगा। उनका मानना है कि शिक्षकों के प्रति दैनिक सम्मान ही इस पावन दिवस का असली सार है।
✍️ कवि: गोकुलानंद जोशी
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