देहरादून: उत्तराखंड में पंचायतों में संवैधानिक संकट के बीच, मंत्रिमंडलीय उप समिति ने अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) आरक्षण पर अपना अंतिम निर्णय ले लिया है। यह उप समिति जल्द ही अपनी सिफारिशें मुख्यमंत्री को सौंपेगी, जिसके बाद त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के लिए ओबीसी आरक्षण का फॉर्मूला तय हो जाएगा।
संवैधानिक संकट और उप समिति का गठन:
राज्य में जल्द ही त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव कराए जाने को लेकर एक तरफ न्यायालय का दबाव है, तो दूसरी तरफ संवैधानिक संकट की स्थिति के चलते सरकार को इस पर जल्द से जल्द निर्णय लेना है। ऐसी स्थिति में राज्य सरकार ने चुनाव में अड़ंगा बने ओबीसी आरक्षण के लिए वन मंत्री सुबोध उनियाल की अध्यक्षता में एक मंत्रिमंडलीय उप समिति का गठन किया था। खास बात यह है कि उप समिति बनने के बाद आरक्षण पर अंतिम निर्णय भी ले लिया गया है।
समर्पित आयोग की रिपोर्ट का परीक्षण:
पंचायत में ओबीसी आरक्षण के लिए पूर्व में एक एकल सदस्यीय समर्पित आयोग गठित किया गया था, जिसने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी। राज्य सरकार इस आयोग की रिपोर्ट का परीक्षण करवाना चाहती थी, जिसके चलते मंत्रिमंडलीय उप समिति का गठन किया गया। माना जा रहा है कि उप समिति ने एकल सदस्यीय समर्पित आयोग की रिपोर्ट का परीक्षण कर लिया है और इस पर अंतिम निर्णय भी ले लिया है।
संभावित आरक्षण फॉर्मूला और सीमा:
मौजूदा समय में अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए 22% का आरक्षण तय है। संवैधानिक रूप से 50% से ज्यादा आरक्षण किसी भी दशा में नहीं दिया जा सकता। इस लिहाज से देखें तो पंचायत चुनाव में ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) को 28% से ज्यादा का आरक्षण नहीं मिल सकता।
ओबीसी आरक्षण की संभावित स्थिति:
उत्तराखंड में पंचायतों के लिए ओबीसी आरक्षण की स्थिति कई फार्मूलों से तय हो सकती है। इसमें सबसे सामान्य फॉर्मूला अलग-अलग सीटों पर प्रदेश, जिला और ब्लॉक स्तर पर लागू करने से जुड़ा है:
- जिला पंचायत अध्यक्ष पद: प्रदेश स्तर पर ओबीसी जनगणना को आधार बनाया जा सकता है।
- जिला पंचायत सदस्य और ब्लॉक प्रमुख: संबंधित जिले में ओबीसी जनगणना को आधार बना सकते हैं।
- बीडीसी मेंबर्स और ग्राम स्तर पर आरक्षण: संबंधित ब्लॉक में मौजूद ओबीसी जनगणना के आधार पर हो सकता है।
जाहिर है कि 2011 के बाद अभी तक जनगणना नहीं हुई है, इसलिए ओबीसी की संख्या को 2011 की जनगणना के आधार पर ही माना जाएगा।
कब होगा अंतिम फैसला?
उम्मीद है कि मंत्रिमंडलीय उप समिति सोमवार (आज) को अपनी सिफारिशें मुख्यमंत्री को सौंपेगी। हालांकि, इसके बाद अंतिम निर्णय प्रस्ताव के रूप में 11 जून को होने वाली कैबिनेट की बैठक में रखा जा सकता है, जिस पर अंतिम फैसला होगा।
क्यों है संवैधानिक संकट?
राज्य में पंचायत चुनाव हरिद्वार जिले को छोड़कर बाकी 12 जिलों में होने हैं। राज्य स्थापना के बाद से ही हरिद्वार जिले में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव उत्तर प्रदेश के साथ होते हैं, जबकि बाकी 12 जिलों के पंचायत चुनाव के लिए फैसला होना बाकी है। त्रिस्तरीय पंचायतों के प्रतिनिधियों का कार्यकाल काफी पहले ही खत्म हो चुका है, जिसके बाद इन्हें राज्य सरकार द्वारा 6 महीने का विस्तार भी दिया गया था, लेकिन यह 6 महीने भी खत्म होने के बाद अब तक राज्य में पंचायत चुनाव नहीं कराए जा सके हैं। इसीलिए इसे एक संवैधानिक संकट के रूप में देखा जा रहा है।
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