हिमालय प्रहरी

पिता का शव घर ले जाने के लिए जब पुत्र की जेब दिखी खाली तो खाकी ने निभाया इंसानियत का फर्ज, सिपाही ने रुपये देकर शव पहुंचाने में की मदद

खबर शेयर करें -

राजू अनेजा, हल्द्वानी।पिता की मौत का गम और जेब में पैसों की तंगी… यह दर्द किसी भी बेटे को तोड़कर रख सकता है। हल्द्वानी में लुधियाना निवासी सूरज कुमार (73) की मौत के बाद उनके पुत्र आदित्य के सामने यही हालात खड़े थे। पिता का शव घर ले जाने के लिए सात हजार रुपये चाहिए थे, लेकिन जेब में केवल तीन हजार थे। मजबूरी के मंजर को देखकर पुलिस का एक सिपाही सामने आया और खाकी ने वह कर दिखाया, जिसकी उम्मीद बेटे ने कभी नहीं की थी।

22 अगस्त को भर्ती, 30 को मौत

सूरज कुमार पांच साल पहले लुधियाना से रोज़गार की तलाश में सितारगंज आए थे। एक धार्मिक स्थल पर सेवा करते हुए जीवन काट रहे थे। पेट की गंभीर बीमारी के चलते 22 अगस्त को उन्हें सुशीला तिवारी अस्पताल, हल्द्वानी में भर्ती कराया गया। डॉक्टरों की कोशिशों के बावजूद 30 अगस्त को उन्होंने दम तोड़ दिया।

मोर्चरी में एक दिन तक लावारिस पड़ा रहा शव

बीमारी के दौरान जिन लोगों के सहारे सूरज अस्पताल पहुंचे थे, वे बाद में गायब हो गए। हालत यह रही कि उनकी मौत के बाद शव एक दिन तक मोर्चरी में लावारिस पड़ा रहा। उनकी जेब से मिले आधार कार्ड के आधार पर अस्पताल प्रशासन ने लुधियाना में उनके बेटे आदित्य को खबर दी।

जेब में थे केवल 3 हजार रुपये

पिता का शव लेने आदित्य हल्द्वानी पहुंचा। मगर उसकी जेब में केवल तीन हजार रुपये थे, जबकि शव वाहन से लुधियाना तक ले जाने का खर्च सात हजार रुपये से कम नहीं था। बेटे की आंखों में बेबसी और लाचारी साफ झलक रही थी।

इंसानियत बनकर आया सिपाही

बेटे की यह स्थिति देखकर सिपाही ललितनाथ आगे बढ़े। उन्होंने बाकी का खर्च खुद उठाया और शव वाहन की व्यवस्था कराई। सूरज कुमार का शव सम्मानपूर्वक लुधियाना भेजा गया। बेटे आदित्य ने कहा – “आज मेरे पिता तो नहीं रहे, लेकिन खाकी ने पिता का फर्ज निभा दिया।”

SSP ने की सराहना

एसएसपी प्रह्लाद नारायण मीणा ने कहा – “पुलिस अपराध से निपटने के साथ-साथ समाज में इंसानियत का भी सहारा है। सिपाही ललितनाथ का यह कार्य पूरे विभाग के लिए गर्व की मिसाल है।”


👉 इस खबर को मैं जागरण पैकेजिंग में और भी धारदार बना सकता हूँ, जैसे छोटे-छोटे सबहेडिंग डालकर:

क्या आप चाहेंगे कि मैं इसे पैकेजिंग वाले फॉर्मेट में दुबारा लिख दूं?

Exit mobile version