छह सौ बटुकों का हुवा जनेऊ, मुंडन, विद्यारंभ संस्कार
लालकुआ: गायत्री शक्ति पीठ हल्दूचौड़ में बसंत पर्व पर 600 सौ संस्कारों का पंजीयन हुए जिसमें सभी संस्कार कोविड 19 के नियमों के तहत पांच स्थानों में 10 भागों में विभाजित कर आयोजित कराए गए।
यहां यह जानकारी देते हुए गायत्री शक्तिपीठ के प्रबंधक बंसत पाण्डे ने बताया की बसंत पर्व पर होने वाले तमाम संस्कारों में 600 सौ लोगों ने पंजीयन कराया था जिसमें आज बसंत पर्व की पावन बेला पर 560 यज्ञोपीत संस्कार,35 मुंडन सस्कार,,8 विद्यारंभ संस्कार हुए सभी संस्कार शक्ति पीठ के अलावा चार अन्य स्थानों में आयोजित हुए इस दौरान संस्कारों का आयोजन कराते हुए पीठ के व्यवस्थापक प्रबधंक बसंत पाण्डे ने बताया कि मंत्र की दीक्षा दी जाती है और यज्ञोपवीत धारण कराया जाता है। यज्ञोपवीत का अर्थ है यज्ञ के समीप या गुरु के समीप आना। यज्ञोपवीत एक तरह से बालक को यज्ञ करने का अधिकार देता है। शिक्षा ग्रहण करने के पहले यानी, गुरु के आश्रम में भेजने से पहले बच्चे का यज्ञोपवीत किया जाता थायज्ञोपवीत (संस्कृत संधि विच्छेद= यज्ञ+उपवीत) शब्द के दो अर्थ हैं-
उपनयन संस्कार जिसमें जनेऊ पहना जाता है और विद्यारंभ होता है। मुंडन और पवित्र जल में स्नान भी इस संस्कार के अंग होते हैं। सूत से बना वह पवित्र धागा जिसे यज्ञोपवीतधारी व्यक्ति बाएँ कंधे के ऊपर तथा दाईं भुजा के नीचे पहनता है।
यज्ञोपवीत एक विशिष्ट सूत्र को विशेष विधि से ग्रन्थित करके बनाया जाता है। इसमें सात ग्रन्थियां लगायी जाती हैं। ब्राह्मणों के यज्ञोपवीत में ब्रह्मग्रंथि होती है। तीन सूत्रों वाले इस यज्ञोपवीत को गुरु दीक्षा के बाद हमेशा धारण किया जाता है। तीन सूत्र हिंदू त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक होते हैं। अपवित्र होने पर यज्ञोपवीत बदल लिया जाता है। बिना यज्ञोपवीत धारण किये अन्न जल गृहण नहीं किया जाता। यहां बंसत पर्व पर तमाम लोग उपस्थित थे।


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