सरकारी नीतियों की भेंट चढ़ी सोयाबीन फैक्ट्री

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soybean | Description, Products, & Facts | Britannica
लालकुआं:
अलग राज्य बनने के बाद भी कोई ठोस नीति नही बनने के कारण राज्य में उद्योगों के बंद होने का सिलसिला जारी है। जिसकारण युवाओं को पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। उद्योग लगाएंगे, रोजगार देंगे, पलायन रोकेंगे जैसे नारे सत्ता की सीढ़ी चढऩे का माध्यम बन कर रह गए है। लगातार बंद होते उद्योग व पहाड़ से पलायन करते युवा सरकारी तंत्र की नाकामी बयां करने के लिए काफी है।
बात करें अगर गांधी जयंति के दिन दो अक्टूबर 1982 को स्वरोजगार व क्षेत्र के विकास के उद्देश्य से केंद्रीय मंत्री एनडी तिवारी व उत्तर प्रदेश सरकार में सहकारिता मंत्री बच्चा पाठक ने 36 एकड़ भूमि में हल्दूचौड़ में सोयाबीन फैक्ट्री की अधारशीला रखी। जिसमें सोयाबीन से घी, रिफाइंड, बड़ी, पशुआहार समेत अन्य उत्पाद बनाने के लिए करोड़ो रूपये के उपकरण लगाये गये। परन्तु स्थापना के बाद सरकार व अधिकारियों ने इसकी तरफ आंखें मूंद दी। और सोयाबीन की अनुपलब्धता का बहाना कर जून 1996 में फैक्ट्री को बंद कर दिया गया। सहकारिया क्षेत्र से जुड़ी उक्त फैक्ट्री से हजारों किसानों के अलावा सैंकड़ों कर्मचारी जुड़े हुए थे। फैक्ट्री में अरबों रूपये की विदेशी मशीनें जंग खाकर बेकार हो गई है। राज्य बनने के बाद क्षेत्रवासियों को उम्मीद थी कि फैक्ट्री को पुन: चलाया जाएगा। लेकिन सरकारी तंत्र की लापरवाही के कारण राज्य बनने के 19 वर्षो बाद भी बंद पड़ी है।

फैक्ट्री बंद होने से किसानों को लगा झटका
लालकुआं: सोयाबीन फैक्ट्री में सैंकड़ों कर्मचारियों के अलावा प्रदेश के हजारों किसान जुड़े थे, जो अपने खेतों में सोयाबीन की फसल उगाते थे, जिसका उन्हें उचित दाम मिल जाता था। फैक्ट्री के बंद होने के बाद किसानों को भारी झटका लगा है। जिसके बाद किसानों ने सोयाबीन की फसल की पैदावार करने से तोबा कर ली है।

मशीनें कबाड़ में बेची तो गोदामों को किराए में दिया है
लालकुआं: राज्य बनने के बाद सरकार ने फैक्ट्री को पुर्नजीवित करने की नीति बनाने के बजाय गत वर्ष अरबों रूपये की सोयाबीन, घी, बड़ी, पशुआहार व स्नैक्स बनाने वाली मशीनों को कबाड़ के तौर पर औने पौने दाम में बेच दिया है। जबकि फैक्ट्री में बने गोदामों को एफसीआई, हिंदूस्तान लीबर, शराब, बिस्कुट व दवा बनाने वाली फैक्ट्रियों को किराए में दिया गया है। इसके अलावा एक सरकारी रेस्ट हाउस के साथ बाकी बची जमीन बंजर पड़ी है।  फैक्ट्री में काम करने वाले कामगारों के गोदामों में काम दिया गया। जिनमें से अधिकतर कर्मचारी रिटार्यर हो चुके है।

केंद्र द्वारा बंद पड़े फैक्ट्रियों को पुर्नजीवित करने के लिए बनाए गए फंड के सहयोग से यूसीएफ द्वारा सोयाबीन फैक्ट्री में फूड प्रोसिंग प्लांट लगाने की दिशा में विचार किया जा रहा है। जिसमें फलों से बनने वाले उत्पादों को बनाया जाएगा। जिसके लिए सर्वे भी किया गया है।
नवीन दुम्का, विधायक

फैक्ट्री में करीब साढ़े चार सौ कर्मचारी काम करते थे। जिनमें से अधिकतर सेवानिवृत हो चुके है। फैक्ट्री को पुर्नजीवित किया जाएगा तो उसमें प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से हजारों लोग लाभावंतित होंगे।
रवि शर्मा, सेवानिवृत कर्मचारी, सोयाबीन फैक्ट्री

और भी जख्म है जो भरे नही
लालकुआं: सोयाबीन फैक्ट्री के साथ ही 1989 में हल्दूचौड़ के बेरीपड़ाव में खुली पोलिस्टर फिल्म बनाने वाली जलपैक इंडिया फैक्ट्री 22 अगस्त 2014 को बंद हो गई। जिसके दौ सौ से ज्यादा कर्मचारी आज भी अपनी सैलरी व अन्य भत्तों के लिए दर दर की ठोकरें खाने को मजबूर है। इसके अलावा भीमताल स्थित हिलट्रोन कम्पनी, कुमाऊँ मंडल विकास निगम द्वारा संचालित केबल फैक्ट्री समेत कई उद्योग जनप्रतिनिधियों की लापरवाही से अंतिम सांसे गिन रहे है। यही नही 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व0 राजीव गांधी व केंदीय मंत्री एनडी तिवारी ने पहाड़ की तलहटी रानीबाग में एचसमटी फैक्ट्री की स्थापना की थी लेकिन जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों की लापरवाही के कारण आज फैक्ट्री बंद हो चुकी है।