राजू अनेजा, काशीपुर। प्रदेश की धामी सरकार द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाई जा रही महिम के अंतर्गत एक बड़ा घोटाला सामने आया है जिसमें अफसरो ने किसानों के रुपए से जमकर मौज उड़ाई है। लेकिन बोर्ड के उच्च पदों पर बैठे महानुभावों को इसकी भनक तक नहीं लगी और यदि लगी तो लंबे समय तक यह मामला ठंडे बस्ते में क्यों पड़ा रहा? फिलहाल पूरा मामला उजागर होने के बाद पीसीयू मैनेजमेंट ने एसएसपी देहरादून को पूरे मामले की जांच के साथ मुकदमा दर्ज करने को पत्र सौंप दिया है।
मामला प्रादेशिक कोऑपरेटिव यूनियन (पीसीयू) में करोड़ों की हेराफेरी का है जिसमे पीसीयू के अधिकारियों ने करोड़ों रुपए का घोटाला कर किसानों के पैसे से खूब मौज उडाई।किसानों की धान खरीद को बैंकों से ओवरड्रा कर रुपयों का खूब दुरुपयोग हुआ।राज्य में पीसीयू के गठन के दौरान शुरू हुए इन घपलों पर बोर्ड के अस्तित्व में आने के बाद से खुलासे शुरू हुए। पीसीयू ने किसानों से धान खरीद का काम अपने हाथ में लिया। धान खरीद केंद्रों से किसानों से धान खरीदा। धान खरीद को बैंकों से लिए गए पैसे को अफसरों ने दूसरे कार्यों में डायवर्ट कर दिया।जांच में सामने आया है कि अफसरों, कोऑपरेटिव से जुड़े जनप्रतिनिधियों के टूर, हवाई टिकटों पर पैसा खर्च किया गया। बताया जा रहा है कि कुछ पैसा अफसरों ने निजी खर्चों में भी व्यय कर डाला।काफी समय बाद अब यह मामला उजागर हुआ है लेकिन तब तक डबल डबल भुगतान ले चुके कुछ किसान स्वर्गवासी भी हो गए जिसके चलते लाखों रुपए डूबने की स्थिति में है। हालांकि पीसीयू चैयरमेन राम मल्होत्रा कडी कार्रवाई की बात कर रहे हैं मगर देखना यह है कि जनता के खून पसीने की कमाई का पैसा किस तरह सरकारी खजाने में वापस लौटता है या नहीं। यदि बोर्ड यह कहता है की घोटाला उसके गठन से पूर्व हुआ तो बोर्ड में बैठे पदाधिकारी बोर्ड गठन के बाद क्या करते रहे? क्या वे सरकारी गाड़ियों का आनंद लेने तक ही सीमित रहे और यदि ऐसा है तो फिर पीसीयूबोर्ड गठन का क्या फायदा हुआ। यह भी जनता के पैसे की बर्बादी नहीं तो फिर क्या है?