बेरीनाग के पीआरडी जवान जगदीश सिंह डोबाल ने मरणोपरांत किया नेत्रदान, समाज को दिया महादान का संदेश
बेरीनाग: आंखों का दान महादान है, जो मृत्यु के बाद भी किसी की अंधेरी जिंदगी को रोशन कर सकता है। बेरीनाग नगर मुख्यालय में रहने वाले 46 वर्षीय पीआरडी जवान जगदीश सिंह डोबाल ने देह त्याग से पहले अपनी आंखों को दान कर समाज को प्रेरणादायक संदेश दिया है।
🇮🇳 महादान का फैसला
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मृतक: जगदीश सिंह डोबाल (46 वर्ष), पीआरडी जवान, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बेरीनाग में चालक के पद पर तैनात थे।
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निर्णय: अचानक स्वास्थ्य खराब होने पर जब परिजन उन्हें देहरादून महंत हॉस्पिटल ले गए, जहाँ स्वास्थ्य लगातार बिगड़ता रहा, तब जगदीश ने अपनी आंखों को दान करने का निर्णय लिया। इस निर्णय से परिजन भी हतप्रभ हो गए।
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पूर्व इच्छा: उनके साथी बताते हैं कि जगदीश पहले से कहते थे कि वह अपने शरीर को मृत्यु से पहले दान करेंगे, ताकि जो भी हिस्सा काम आ सके, वह किसी का जीवन बचा सके।
🌟 जगदीश का बहुमुखी व्यक्तित्व
जगदीश सिंह डोबाल स्वास्थ्य कर्मी होने के साथ-साथ एक रंगकर्मी और पशु प्रेमी भी थे:
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रंगकर्मी: उन्होंने बेरीनाग में आयोजित रामलीला में 5 वर्षों तक सुग्रीव का अभिनय किया।
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पशु प्रेमी: उन्हें पशु-पक्षियों से बहुत लगाव था और वे बचपन से ही खरगोश, गिनी पीक, तोता, मुर्गी और कुत्ते पालने के शौकीन थे।
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एम्बुलेंस चालक: एम्बुलेंस चालक के रूप में वह अस्पताल में आने वाले मरीज और तीमारदार की हमेशा मदद करते थे।
💡 आँखों के दान का महत्व और प्रक्रिया
जगदीश के आंखों के दान करने की विभिन्न संगठनों ने सराहना की है।
| महत्व | प्रक्रिया की जानकारी |
| रोशनी का स्रोत | भारत में लाखों लोग कॉर्निया खराब होने के कारण अंधेपन का शिकार हैं, जिनकी दृष्टि दान की गई आँखों से वापस लाई जा सकती है। |
| नई जिंदगी | एक व्यक्ति की दान की गई आँखों से दो लोग नई रोशनी पा सकते हैं। |
| सरल और सुरक्षित | आँखें मृत्यु के 6 घंटे के भीतर निकाली जाती हैं, जिससे शरीर को कोई नुकसान नहीं होता और अंतिम संस्कार में कोई बाधा नहीं आती। |
| कोई सीमा नहीं | आँखें दान करने की कोई उम्र की सीमा नहीं है। बच्चे, बड़े, बुजुर्ग और चश्मा पहनने वाला व्यक्ति भी आँखें दान कर सकता है। |
जगदीश सिंह डोबाल ने अपनी मृत्यु के बाद भी किसी को रोशनी देकर समाज में सेवा, करुणा और परोपकार की भावना को बढ़ाया है।
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