उत्तराखंड की औषधीय गुणों से भरपूर इस सब्जी का करें नियमित सेवन, ये बीमारियां रहेंगी आप से दूर

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पहाड़ की संस्कृति…यहां के खान-पान की बात ही अलग है. यहां के अनाज तो गुणों का खान हैं ही, सब्जियां भी पौष्टिक तत्वों से भरपूर है. ऐसी ही खास पहाड़ी सब्जी है गडेरी जिसे अलग-अलग जगहों पर अलग नाम से जाना जाता है. कुछ लोग इसे अरबी कहते हैं कई जगह ये पिनालू के नाम से जानी जाती है.

भांग के दानों व सरसों आदि के साथ मिलाकर बनने वाली गडेरी की तासीर गर्म होती है. जिससे ठंड का मौसम आते ही गडेरी की सब्जी की खरीद बढ़ गई है. 25 से 30 रुपये किलो कीमत होने के चलते भी आजकल इसकी डिमांड बाजार में काफी ज्यादा है. अगर आप ठेठ पहाड़ी हैं तो गडेरी (अरबी) की सब्जी आपने जरूर खाई होगी.

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ये पहाड़ी सब्जी गुणों की खान हैं, अगर हम आपको इसके गुणों के बारे में बताना शुरू करेंगे तो आप भी इस पहाड़ी सब्जी के मुरीद हो जाएंगे. एक शोध में पता चला है कि इसमें न केवल पर्याप्त मात्रा में आयरन मौजूद है, बल्कि शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले एंटी ऑक्सीडेंट और खून को साफ करने वाले तत्व भी हैं. आप जानते ही होंगे कि आयरन तत्व न होने से एनीमिया, सिरदर्द या चक्कर आना, हीमोग्लोबिन बनने में परेशानी होना जैसी परेशानियां शरीर को पस्त कर देती हैं.
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इसके अलावा एंटीऑक्सिडेंट अक्‍सर अच्‍छे स्‍वास्‍थ्‍य और बीमारियों को रोकने का काम करते है. कैंसर से बचाने, आंखों की रोशनी के लिए, मजबूत लिवर के लिए एंटी ऑक्सीडेंट शानदार चीज है. साथ ही इसमें मौजूद फाइबर्स मेटाबालिज्म को सक्रिय बनाते हैं जिससे वजन नियंत्रित रखने में मदद मिलती है. पाचन क्रिया को बेहतर रखने के लिए भी यह लाभदायक है.

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धान मड़ाई के बाद और गेहूं की बुआई से पहले गडेरी को खोदा जाता है. गडेरी को अधिक पानी की जरूरत नहीं होती है. असिंचित भूमि की गडेरी स्वादिष्ट और पकने में आसान होती है. जबकि सिंचित भूमि की गडेरी को पकाने में दिक्कत रहती है. गडेरी की सब्जी पहाड़ में जाड़ों भर खाई जाती है. गहत की दाल में भी गडेरी डाली जाती है. गडेरी की सब्जी में भांग के दानों के बीज को पीस कर और छान कर डाला जाता है, जिससे सब्जी की तासीर गर्म हो जाती है.

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