नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट में पति-पत्नी के बीच चल रहे एक अनूठे विवाद पर सुनवाई हुई। एक विवाहित महिला ने अपने पति से इस आधार पर तलाक की मांग की है कि उसका पति और ससुराल वाले नास्तिक मिजाज के हैं, जो उसके धर्म और रीति-रिवाजों का अनुपालन नहीं करते।
मामले को विचाराधीन रखते हुए, न्यायमूर्ति रविंद्र मैठाणी और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने फिलहाल इस बसे-बसाए परिवार को बचाने के उद्देश्य से, इसे उच्च न्यायालय के समझौता केंद्र को रेफर कर दिया है।
💔 तलाक का आधार: धार्मिक असहमति
- महिला का आरोप: महिला ने आरोप लगाया कि उसके पति और ससुराल वाले एक ही धर्म के होने के बावजूद धार्मिक रीति-रिवाजों को नहीं मानते। वे एक नामी संत के अनुयायी हैं और किसी भी हिंदू परंपरा का पालन नहीं करते।
- रोकथाम: महिला का कहना है कि वह एक धार्मिक महिला है और पूजा-पाठ करना चाहती है, लेकिन उसे ऐसा नहीं करने दिया जा रहा है।
- उत्पीड़न के आरोप: महिला ने आरोप लगाया कि शादी के बाद उसे घर का मंदिर हटाने और देवताओं की मूर्तियां पैक कर बाहर रख देने के लिए कहा गया।
- पुत्र का नामकरण: जब उनके बेटे का नामकरण संस्कार करने का समय आया, तो पति ने यह कहकर इनकार कर दिया कि उनके आध्यात्मिक मार्ग में ऐसे संस्कारों की अनुमति नहीं है।
🏛️ कानूनी प्रक्रिया
- धार्मिक विश्वासों से समझौता न कर पाने पर महिला ने पारिवारिक न्यायालय, नैनीताल में तलाक की अर्जी दी थी।
- पारिवारिक न्यायालय ने उसकी याचिका खारिज कर दी थी।
- महिला ने इस आदेश को हाईकोर्ट की खंडपीठ में चुनौती दी।
हाईकोर्ट का निर्णय: कोर्ट ने मुख्य याचिका को विचाराधीन रखते हुए, आपसी समझौता कराने के लिए मामले को उच्च न्यायालय में स्थित समझौता केंद्र (Mediation Centre) को भेज दिया है।
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