नैनीताल: उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों को लेकर चल रही कानूनी प्रक्रिया के तहत गुरुवार को राज्य सरकार ने अपना आरक्षण रोस्टर उच्च न्यायालय में प्रस्तुत कर दिया है। इस पर याचिकाकर्ताओं ने रोस्टर का अध्ययन करने के लिए समय मांगा, जिसे स्वीकार करते हुए न्यायालय ने अगली सुनवाई की तिथि 27 जून (शुक्रवार) तय की है।
सरकार का पक्ष: ‘नया रोस्टर संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप’
मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र एवं न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ के समक्ष सुनवाई के दौरान, महाधिवक्ता एस.एन. बाबुलकर व मुख्य स्थायी अधिवक्ता ने राज्य सरकार का पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि सरकार ने 9 जून, 2025 को पंचायत चुनावों हेतु नए नियम जारी किए थे, जो 14 जून को गजट में अधिसूचित हो गए थे। सरकार ने तर्क दिया कि पिछड़ा वर्ग समर्पित आयोग की रिपोर्ट के आधार पर पूर्ववर्ती आरक्षण रोस्टर को शून्य घोषित करना अनिवार्य था, और संशोधित रोस्टर संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप तैयार किया गया है।
याचिकाकर्ताओं के सवाल: ‘रिपोर्ट सार्वजनिक क्यों नहीं?’
याचिकाकर्ता पक्ष की ओर से अधिवक्ता योगेश पचौलिया ने तर्क दिया कि सरकार ने जिस आयोग की रिपोर्ट का हवाला देकर चुनाव रोके हैं, उस रिपोर्ट को अब तक सार्वजनिक नहीं किया गया है, जो जनहित और पारदर्शिता के खिलाफ है। उन्होंने यह भी कहा कि उत्तराखंड पंचायत राज अधिनियम और संविधान के अनुच्छेद 243-T और 243-D के तहत आरक्षण रोस्टर लागू करना एक संवैधानिक बाध्यता है, जिससे समझौता नहीं किया जा सकता।
कोर्ट की मंशा: ‘विधिसम्मत प्रक्रिया सुनिश्चित करना’
न्यायालय ने इस दौरान स्पष्ट किया कि उसकी मंशा चुनाव टालने की नहीं है, बल्कि विधिसम्मत प्रक्रिया सुनिश्चित करने की है।
अब सबकी निगाहें शुक्रवार को होने वाली सुनवाई पर टिकी हैं, जब इस महत्वपूर्ण मामले पर आगे की बहस होगी।
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