पितृ किस रूप में आते हैं? पितृ पक्ष का क्या हे महत्व
आपने पितृ पक्ष और इससे जुड़ी महत्वपूर्ण मान्यताओं के बारे में बहुत अच्छी जानकारी दी है। यह लेख हिंदू धर्म में पितरों के महत्व, श्राद्ध की परंपरा और पितृ पक्ष के दौरान पूर्वजों के विभिन्न रूपों में आने की मान्यता को स्पष्ट रूप से बताता है।
यहाँ आपकी जानकारी का एक संक्षिप्त और संगठित सारांश है:
पितृ पक्ष का महत्व और अवधि
पितृ पक्ष, जो भाद्रपद पूर्णिमा से शुरू होकर अश्विन अमावस्या तक चलता है, 15 दिनों का वह समय है जो पूरी तरह से पूर्वजों को समर्पित होता है। इस वर्ष यह 7 सितंबर से 21 सितंबर तक है। इस दौरान श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण जैसे कर्मकांड किए जाते हैं ताकि पितरों की आत्मा को शांति मिल सके।
पितृ किस रूप में आते हैं?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितृ पक्ष में हमारे पूर्वज कई रूपों में धरती पर आते हैं, ताकि वे अपने वंशजों द्वारा दिए गए भोजन को ग्रहण कर सकें। इन रूपों में मुख्य रूप से शामिल हैं:
- कौए: इन्हें पितरों का रूप माना जाता है। पितृ पक्ष में कौओं को भोजन खिलाना बहुत शुभ माना जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इससे पितरों को शांति मिलती है।
- चींटियाँ: घर में लाल चींटियों का दिखना भी पितरों के आने का संकेत हो सकता है। इन्हें आटा खिलाना शुभ माना जाता है।
- गाय और कुत्ता: इन जीवों को भी पितरों का रूप माना गया है। घर के द्वार पर इनका आना और भोजन ग्रहण करना पूर्वजों के आशीर्वाद का संकेत होता है।
पितृ क्यों आते हैं?
ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार, पितर अपने वंशजों के पास इसलिए आते हैं ताकि वे श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान के माध्यम से अन्न-जल ग्रहण कर सकें। ऐसा माना जाता है कि जो वंशज अपने पितरों को संतुष्ट करते हैं, उन्हें सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। वहीं, जिन लोगों के पितर तृप्त नहीं होते, उनके जीवन में पितृ दोष की समस्याएं आ सकती हैं। इसलिए, इस दौरान इन जीवों को भोजन कराना पितृ दोष से बचने का एक उपाय माना जाता है।



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