उपराष्ट्रपति चुनाव में भाजपा अकेले सब पर भारी, किसी के समर्थन की दरकार नहीं, जानिए समीकरण
देश में राष्ट्रपति के चुनाव के बाद उपराष्ट्रपति का चुनाव भी होना है। चुनाव आयोग की ओर से उपराष्ट्रपति के चुनाव की अधिसूचना जारी की जा चुकी है। इसके मुताबिक 6 अगस्त को मतदान होना है। राष्ट्रपति चुनाव में तो भाजपा सहयोगी दलों के साथ ही अन्य क्षेत्रीय दलों का समर्थन लेने पर भी मजबूर हुई है मगर उपराष्ट्रपति चुनाव में भाजपा अकेले अपने दम पर चुनाव जीतने की स्थिति में दिख रही है। उपराष्ट्रपति के चुनाव में केवल लोकसभा और राज्यसभा के सांसद ही मतदान करते हैं। इस चुनाव में मनोनीत सांसदों को भी मतदान करने का अधिकार हासिल है। ऐसी स्थिति में भाजपा के पास अकेले अपने दम पर उपराष्ट्रपति चुनाव में अपने उम्मीदवार को जिताने की ताकत है। उसे सहयोगी दलों और अन्य क्षेत्रीय दलों की मदद लेने की भी आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए संसद का नंबर गेम समझना जरूरी है। हाल में लोकसभा के लिए हुए उपचुनाव में भाजपा ने रामपुर और आजमगढ़ की दो सीटों पर जीत हासिल की थी। पहले ये दोनों सीटें समाजवादी पार्टी के कब्जे में थीं। सपा मुखिया अखिलेश यादव और मोहम्मद आजम खान के लोकसभा से इस्तीफे के बाद इन दोनों सीटों पर उपचुनाव हुए थे। भाजपा ने सपाई किलों को ध्वस्त करते हुए इन दोनों सीटों पर जीत हासिल की है। इस जीत के साथ हुई लोकसभा में भाजपा सांसदों की संख्या बढ़कर 303 पर पहुंच गई है।
हाल में विभिन्न राज्यों में हुए राज्यसभा चुनाव में भाजपा को तीन सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है। फिर भी राज्यसभा में भाजपा के पास 92 सांसदों की ताकत है। इस तरह यदि लोकसभा और राज्यसभा के सांसदों की संख्या को जोड़ दिया जाए तो भाजपा के पास 395 सांसदों की ताकत है। उपराष्ट्रपति का चुनाव जीतने के लिए 388 सांसदों के समर्थन की जरूरत है और भाजपा के पास अकेले अपने दम पर इस संख्या से 7 ज्यादा यानी 395 सांसदों का वोटर है। ऐसी स्थिति में भाजपा के पास अकेले अपने दम पर उपराष्ट्रपति चुनाव जीतने की क्षमता है।
उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए भाजपा ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। भाजपा सूत्रों का कहना है कि इसके लिए पार्टी में अंदरूनी स्तर पर गहराई से मंथन चल रहा है। राष्ट्रपति चुनाव के लिए पार्टी ने झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को चुनाव मैदान में उतारा है। अब सबकी निगाहें इस बात पर लगी हुई हैं कि उपराष्ट्रपति के चुनाव में पार्टी की ओर से किसे चुनाव मैदान में उतारा जाता है।
सियासी जानकारों का कहना है कि उपराष्ट्रपति के चुनाव में विपक्ष की ओर से भले ही उम्मीदवार उतारा जाए मगर एनडीए की ताकत को देखते हुए विपक्षी उम्मीदवार की हार पहले से ही तय है। भाजपा के पास अकेले अपने दम पर उम्मीदवार को जिताने की क्षमता है जबकि उसे अन्य सहयोगी दलों का समर्थन भी हासिल होगा। ऐसे में सत्तापक्ष की ओर से उतरने वाला उम्मीदवार आसानी से चुनाव जीतने में कामयाब होगा। उपराष्ट्रपति के चुनाव के लिए
नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख
ऐसे में माना जा रहा है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष की ओर से जल्दी ही इसे लेकर गतिविधियां बढ़ेंगी। राष्ट्रपति के चुनाव में एनडीए के पास बहुमत से एक फ़ीसदी वोट कम है मगर बीजू जनता दल और वाईएसआर कांग्रेस के समर्थन ने एनडीए की राह आसान कर दी है। कुछ और क्षेत्रीय दलों ने भी एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने की घोषणा की है। इस कारण द्रौपदी मुर्मू की आसानी से जीत तय मानी जा रही है।












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