भाजपा और शिवसेना की राहें नवंबर 2019 में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद सीएम पद को लेकर अलग हो गई थीं। उद्धव ठाकरे की पार्टी का कहना था कि अमित शाह ने वादा किया था कि यदि सत्ता मिली तो दोनों दलों से ढाई-ढाई साल के लिए सीएम बनाया जाएगा।
इससे भाजपा ने इनकार किया था और कहा कि ऐसा कोई वादा ही नहीं था बल्कि ज्यादा सीटों वाले दल को ही सत्ता मिलनी चाहिए। इस पर टकराव इस कदर बढ़ा था कि उद्धव ठाकरे अलग ही हो गए और उन्होंने कांग्रेस एवं एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बना ली थी, जिसके करीब ढाई साल तक मुखिया रहे।
उस चुनाव को 5 साल बीत गए हैं। शिवसेना दो धड़ों में बंट गई है और इस बार 57 सीटें एकनाथ शिंदे की शिवसेना को मिली हैं, जबकि भाजपा के खाते में 132 सीटें आई हैं। इसके बाद भी एकनाथ शिंदे सेना चाहती है कि मुख्यमंत्री उनका हो। पार्टी के नेता एकनाथ शिंदे को फिर से मुख्यमंत्री बनाने के लिए लॉबिंग में जुटे हैं और बिहार से लेकर हरियाणा तक के उदाहरण दिए जा रहे हैं। यही नहीं एकनाथ शिंदे की शिवसेना की भाषा भी अब 2019 वाले उद्धव ठाकरे की शिवसेना जैसी हो गई है। तब संजय राउत जैसे नेताओं का कहना था कि भाजपा ने वादा किया था कि ढाई-ढाई साल का सीएम बनेगा।
अब एकनाथ शिंदे सेना भी दावा कर रही है कि भाजपा से वादा हुआ था कि यदि सत्ता मिली तो सीएम शिवसेना से ही होगा। शिंदे सेना के एक लीडर ने कहा कि लोकसभा चुनाव में बुरी हार के बाद बैठकें हुई थीं। इन मीटिंग्स में तय हुआ था कि यदि सरकार बनी तो बिना यह देखे कि किसकी कितनी सीटें हैं, एकनाथ शिंदे को ही सीएम बनाया जाएगा।
वहीं भाजपा ने इसका जवाब देते हुए कहा है कि अमित शाह की मौजूदगी में मुंबई में ही मीटिंग हुई थी। इस मीटिंग में कहा गया था कि महायुति को यदि बहुमत मिला तो सीएम का फैसला भाजपा का संसदीय बोर्ड, एनसीपी और शिवसेना का नेतृत्व करेगा। हां, चुनाव एकनाथ शिंदे की लीडरशिप में ही लड़ा जाएगा। फिर भी सीएम का फैसला इलेक्शन के बाद मिलकर लिया जाएगा। भाजपा नेता ने कहा कि इस तरह तय किया गया था कि बाद में फैसला होगा और पहले से कुछ तय नहीं था।
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