राजू अनेजा,काशीपुर। महानगर कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष एवं वरिष्ठ कांग्रेस नेत्री अलका पाल ने केंद्र की भाजपा सरकार पर करारा हमला बोलते हुए कहा कि मनरेगा का नाम बदलकर सरकार ने महात्मा गांधी के विचारों और रोजगार के अधिकार—दोनों पर चोट की है। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी रूरल एम्प्लॉयमेंट गारंटी एक्ट (मनरेगा) को बदलकर विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण) करना केवल नाम परिवर्तन नहीं, बल्कि रोजगार गारंटी की आत्मा को कमजोर करने का प्रयास है।
काम के अधिकार पर कुठाराघात
अलका पाल ने कहा कि मनरेगा एक मांग-आधारित योजना थी। कोई भी मजदूर काम मांगता था तो सरकार को उसे रोजगार देना ही पड़ता था। लेकिन नई व्यवस्था में अब डिमांड के आधार पर काम नहीं मिलेगा, बल्कि केंद्र द्वारा तय मानकों और बजट के अनुसार ही रोजगार दिया जाएगा।
उन्होंने कहा—“फंड खत्म, तो अधिकार खत्म”—यह नई योजना का असली चेहरा है।
राज्यों पर बढ़ाया बोझ
महानगर अध्यक्ष ने कहा कि पहले मनरेगा में 90 प्रतिशत अंशदान केंद्र सरकार और 10 प्रतिशत राज्य सरकार का होता था, लेकिन अब इसे बदलकर 60 प्रतिशत केंद्र और 40 प्रतिशत राज्य कर दिया गया है।
उन्होंने आरोप लगाया कि यह बदलाव राज्यों की आर्थिक स्थिति को कमजोर करेगा और केंद्र अपनी जिम्मेदारी से पीछे हट रहा है।
पंचायतों की भूमिका कमजोर
अलका पाल ने कहा कि मनरेगा के तहत काम ग्राम सभाओं और पंचायतों के माध्यम से होता था, जिससे लोकतंत्र की जड़ें मजबूत होती थीं। लेकिन नई स्कीम में जीआईएस उपकरण, पीएम गति शक्ति, डिजिटल नेटवर्क, बायोमेट्रिक, जियो-टैगिंग और डैशबोर्ड अनिवार्य कर दिए गए हैं।
उन्होंने कहा कि इतनी तकनीकी प्रक्रियाओं के कारण लाखों ग्रामीण मजदूर काम से वंचित रह जाएंगे, क्योंकि वे इस सिस्टम को समझ ही नहीं पाएंगे।
दो महीने बिना रोजगार के रहेंगे मजदूर
कांग्रेस नेत्री ने कहा कि नई व्यवस्था में खेती-किसानी के सीजन में दो महीने तक रोजगार की कोई गारंटी नहीं होगी।
उन्होंने सवाल उठाया—“क्या मजदूर को उसके भाग्य के भरोसे छोड़ दिया जाएगा?”
सरकार को फर्क नहीं पड़ेगा कि मजदूर को कोई शोषण कर रहा है या थोड़े से अनाज पर काम करा रहा है।
नाम बदलने पर करोड़ों का खर्च
अलका पाल ने कहा कि किसी योजना का नाम बदलना केवल कागजी प्रक्रिया नहीं होती। इसके लिए सरकारी खजाने से करोड़ों रुपये खर्च होते हैं, जिसका सीधा बोझ जनता पर पड़ता है।
उन्होंने सवाल किया कि क्या इससे बेरोजगारी या महंगाई कम होगी?
प्रतीकों की राजनीति छोड़ने की नसीहत
महानगर अध्यक्ष ने कहा कि यह बदलाव रोजगार गारंटी की आत्मा पर सीधा हमला है। धन का केंद्रीयकरण कर 10 प्रतिशत लोगों के हित में नीतियां बनाकर 90 प्रतिशत जनता को विकसित भारत का सपना दिखाया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि जब जनता रोजगार की उम्मीद कर रही है, तब सरकार को प्रतीकों की राजनीति छोड़कर जमीनी हकीकत पर काम करना चाहिए।
कांग्रेस करेगी पुरजोर विरोध
अलका पाल ने दो टूक कहा कि इस तरह के प्रावधानों का कांग्रेस पार्टी हर स्तर पर विरोध करेगी।
उन्होंने कहा—“करोड़ों गरीबों, मजदूरों और कामगारों के हक सत्ता के हाथों छिनने नहीं दिए जाएंगे।”
अपने मोबाइल पर ताज़ा अपडेट पाने के लिए -
👉 हमारे व्हाट्सएप ग्रुप को ज्वाइन करें


