हिमालयी नदियों को बचाने की पहल: 7 कस्बों में लगेंगे ₹225 करोड़ के जल शोधन प्लांट

खबर शेयर करें -

हिमालय की वादियों से निकलने वाली जीवनदायिनी नदियाँ, जैसे भगीरथी, अलकनंदा और बालगंगा, अब मानव बस्तियों के प्रयुक्त (गंदे) जल से दूषित हो रही हैं। इस गंभीर समस्या को रोकने के लिए, उत्तराखंड के सात पहाड़ी कस्बों में स्वच्छ भारत मिशन 2.0 के तहत प्रयुक्त जल शोधन (वाटर ट्रीटमेंट) प्लांट लगाए जाएंगे।


 

परियोजना का विवरण और व्यय

 

शहरी विकास मंत्रालय स्वच्छ भारत मिशन 2.0 के तहत प्रयुक्त जल प्रबंधन पर काम कर रहा है।

  • लागत: इन परियोजनाओं पर करीब ₹225 करोड़ खर्च किए जाएंगे। इसमें से ₹203 करोड़ केंद्र सरकार और ₹22 करोड़ राज्य सरकार देगी।
  • क्षमता: इन प्लांटों के लगने से प्रतिदिन 58 लाख लीटर प्रयुक्त जल को बिना शोधन के नदियों में प्रवाहित होने से रोका जा सकेगा।
  • स्थिति: परियोजनाओं की डीपीआर (डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट) तैयार हो गई है और इसे नेशनल इंस्टीटयूट आफ अर्बन को सुझावों के लिए भेजा गया है।
  • चुनौती: उत्तराखंड में प्रतिदिन 85.6 मिलियन लीटर पानी का उपयोग होता है, लेकिन शहरी निकायों के लिए अब तक केवल सात वाटर ट्रीटमेंट प्लांट की डीपीआर ही तैयार की जा सकी है, जो राज्य की जरूरत के मुकाबले काफी कम है।
यह भी पढ़ें 👉  बिंदुखत्ता : कांग्रेस नेता और पूर्व सैनिक बलवंत सिंह दानू का निधन

 

प्रमुख परियोजना स्थल (नदी के नाम के साथ)

 

ये प्लांट नदियों के उद्गम स्थलों के पास स्थित कस्बों में लगाए जाएंगे, ताकि शोधित जल ही नदियों में प्रवाहित हो:

  1. चिन्यालीसौड़: भगीरथी नदी
  2. सतपुली: नयार नदी
  3. घनसाली: भिलंगना नदी
  4. चमीला: बालगंगा नदी
  5. पुरोला: यमुना की सहायक नदी
  6. बड़कोट: यमुना नदी
  7. पौड़ी: लोअर चोप्ता गदेरा
यह भी पढ़ें 👉  उत्तराखंड में फिर बारिश और बर्फबारी की आशंका, 6 और 7 अक्टूबर को 'भारी से बहुत भारी' बारिश का अलर्ट

 

प्रयुक्त जल से नदियों को नुकसान

 

नदियों में बिना ट्रीटमेंट के गंदा पानी छोड़ने से कई तरह के गंभीर नुकसान होते हैं:

  • धार्मिक महत्व पर असर: नदियों की पवित्रता और धार्मिक महत्व पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • पारिस्थितिकी तंत्र: नदी में ऑक्सीजन (O2) का स्तर घट जाता है, जिससे जलीय जीवों के लिए खतरा पैदा होता है और नदी का पारिस्थितिकी तंत्र बिगड़ने लगता है।
  • स्वास्थ्य जोखिम: दूषित जल में बैक्टीरिया, वायरस और परजीवी पनपते हैं, जिससे नदी के जल पर आश्रित ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों के लोगों को स्वास्थ्य का खतरा होता है।
  • उपयोगिता में कमी: जल पीने योग्य और सिंचाई योग्य नहीं रह पाता।
  • अन्य प्रदूषक: डिटर्जेंट, तेल, रसायन और प्लास्टिक कचरा जलीय जीवों के लिए नुकसानदायक होते हैं।
  • अर्थव्यवस्था पर प्रभाव: पर्यटन और स्थानीय अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचता है।
यह भी पढ़ें 👉  उत्तराखंड का 'स्वस्थ नारी, सशक्त परिवार' अभियान सफल: 13.48 लाख लोग लाभान्वित
Ad Ad Ad