उत्तरकाशी: 50 साल बाद पुनर्जीवित हुई ‘जोजोड़ा’ परंपरा, दुल्हन खुद बारात लेकर पहुँची दूल्हे के घर
उत्तरकाशी (मोरी तहसील): उत्तरकाशी जिले के आराकोट क्षेत्र में रविवार की रात एक ऐसी अनोखी शादी हुई जिसने बंगाण क्षेत्र की विलुप्त होती सदियों पुरानी परंपरा ‘जोजोड़ा’ को पुनर्जीवित कर दिया। इस विवाह में दुल्हन कविता स्वयं अपने परिजनों और ढोल-नगाड़ों के साथ बारात लेकर दूल्हे के घर (कलीच गांव) पहुँची।
👰 ‘जोजोड़ा’ परंपरा
- परिभाषा: यहाँ की बोली में ऐसे विवाह को ‘जोजोड़ा’ कहा जाता है, जिसका अर्थ है “जो जोड़ा भगवान खुद बनाते हैं।”
- रीति: इस परंपरा में दुल्हन पक्ष बारात लेकर दूल्हे के घर पहुँचता है और पूरे रीति-रिवाज के साथ विवाह संपन्न होता है।
- बाराती: दुल्हन पक्ष के बारातियों को ‘जोजोड़िये’ कहा जाता है।
- उद्देश्य: इस रस्म का मूल उद्देश्य बेटियों के पिता पर आर्थिक बोझ कम करना था।
📜 विलुप्त होती परंपरा का पुनर्जागरण
- विलुप्ति: इतिहासकार प्रयाग जोशी (किताब: ‘रवाई से उत्तराखंड’) के अनुसार, 1970 के दशक में जब क्षेत्र आर्थिक रूप से बदलने लगा और समाज में नए प्रभाव आए, तब पारंपरिक रीति-रिवाजों में बदलाव आया और ‘जोजोड़ा’ जैसी लोकसंस्कृति विलुप्त हो गई थी। बंगाण क्षेत्र में करीब पाँच दशक पहले (1970 के बाद) ऐसी शादियाँ बंद हो गई थीं।
- पुनर्जीवन: कलीच गांव के पूर्व प्रधान कल्याण सिंह चौहान (दूल्हे के पिता) ने इस परंपरा को फिर से जीवित करने का साहस दिखाया। कल्याण सिंह ने अपने बेटे मनोज (पुत्र कल्याण सिंह चौहान, कलीच) की शादी ग्राम जाकटा निवासी कविता (पुत्री जनक सिंह) से दहेज रहित और सांस्कृतिक परंपरा से जुड़ी इस पहल के तहत की।
- दहेज रहित विवाह: इस विवाह में दोनों पक्षों की ओर से न तो दहेज मांगा गया और न ही किसी प्रकार की भौतिक मांग रखी गई।
🥁 उत्सव का माहौल
रविवार रात जब दुल्हन कविता अपने परिजनों के साथ ढोल-दमाऊं की थाप पर बारात लेकर कलीच पहुँची, तो पूरे गाँव में उत्सव जैसा माहौल बन गया। दूल्हे पक्ष ने भी पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ बारातियों का स्वागत किया। स्थानीय लोग इसे सामाजिक समानता और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक मान रहे हैं।
यह अनोखी शादी आधुनिकता के दौर में भी परंपराओं को सहेजने का एक मजबूत उदाहरण बन गई है।
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