फोन में मगन छु आज कल की चेली-बुआरी, यह कैसा समय और कैसा फैशन

खबर शेयर करें -

यह कविता आजकल की महिलाओं और लड़कियों पर कटाक्ष करती है, जो हर समय मोबाइल फोन में व्यस्त रहती हैं। कवि कहते हैं कि आजकल की बहुएँ (बुआरी) और बेटियाँ (चेली) फोन में इतनी मगन रहती हैं, मानो उन्हें पहाड़ पर फुर्सत मिल गई हो।

*फोन में मगन छु आज कल की चिल-बुआरी*
आजकल की बुआरी, फोन में मगन
जैसे बखत मिलो पहाड़ पन।
चिल-बुआरी सब मगन छन फोन में,
रात हो या ब्याह – हर बखत मगन छन फोन में।

बुआरी खाण-पकाण भुल जांणी,
चेली किताब पढ़ण भूल जांणी।
बुआरी चाहा पीलूढ़ भूल जांणी,
चेली खाड़-खाण तक भूल जांणी।

यह भी पढ़ें 👉  हल्द्वानी: कारोबारी पति ने ससुर से ठगे लाखों, फिर पत्नी के नाम पर लोन लेकर हुआ लापता

आजकल की बुआरी, फोन में मगन,
जैसे बखत मिलो पहाड़ पन।
बुआरी फेसबुक में मगन छिन,
चेली इंस्टाग्राम में मस्त छिन।
बुआरी फोन में बात करैं,
चेली व्हाट्सएप में गप्प लड़ैं।

रात-दिन सास–ससुर पैलाग नी करैं,
मोबाइल में बस “हेलो-हाय” करैं।
रत-ब्याह में दुई गिलास चाहा मंगनी,
बुआरी मोबाइल में कु – कचकचाट करनी।

आहा रे, क्या भगत जमाना आयो,
आहा रे, क्या फैशन जमाना लायो।
ईजा-बाबू सोचें – बीया करां,
बुआरी हमरी सेवा-पानी करां।
सास खाण बढूनै,
बुआरी बिस्तर ल्यौणै।

यह भी पढ़ें 👉  हल्द्वानी: 8 महीने की गर्भवती महिला की तबीयत बिगड़ने से मौत, परिजनों ने लगाया लापरवाही का आरोप

आहा रे, क्या भगत जमाना आयो,
आहा रे, क्या फैशन जमाना लायो।
“नमस्कार, पैलाग” सब भूल गइ,
“हेलो-हाय” में ही सब उलझ गइ।
धोती-साड़ी सब छोड़ देली,
सूट-पैंट में सब चरण फैगी।

रवाट-भात अब कम खानी,
चाऊमीन-मोमोज रोज भाषकुनी।
कपड़न में मैल निकालन को समय न मिलनो,
मोबाइल में रील देखन में दिन बीत जालो।
गाड़ में चार तसयाल भी नी डालनै,
घर में अबेर – बिस्तर पकड़न में देर नी करनै।

यह भी पढ़ें 👉  उत्तराखंड: महिला पुलिसकर्मी ने राष्ट्रपति से मांगी इच्छामृत्यु की अनुमति, लगाया उत्पीड़न का गंभीर आरोप

आजकल की बुआरी, फोन में मगन,
जैसे बखत मिलो पहाड़ पन।

कवि आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहते हैं, “आहा रे, क्या भगत जमाना आयो, आहा रे, क्या फैशन जमाना लायो।” यानी यह कैसा समय और कैसा फैशन आ गया है।

कवि गोकुलानन्द जोशी

पता – करासमाफ़ी काफलीगैर बागेश्वर
वर्तमान पता -बिंदुखत्ता लालकुआं नैनीताल