पंतनगर विश्वविद्यालय : श्रमिकों की मांगों को लेकर विधायक बेहड़ बैठे धरने पर तो पूर्व विधायक राजेश शुक्ला पहुँचे धामी दरबार , नेताओं की रस्साकशी के बीच कहि दब न जाए श्रमिकों की आवाज़

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राजू अनेजा,पंतनगर। पंतनगर विश्वविद्यालय के कर्मियों व श्रमिकों की लंबित मांगों को लेकर शुरू हुआ संघर्ष अब और तेज़ हो गया है। 17 नवंबर की प्रातः 11 बजे से श्रमिकों के समर्थन में  शुरू हुआ विधायक तिलक राज बेहड़ का धरना मंगलवार को भी पूरे जोर के साथ जारी है। विश्वविद्यालय के कर्मचारीयो के सम्मान, सुरक्षा और स्थायी समाधान की मांग पर वह पूरी तरह अडिग हैं। उनका कहना है कि जब तक सभी वैध मुद्दों का निस्तारण नहीं हो जाता, तब तक आंदोलन की राह खुली रहेगी।

 

बेहेड़ ने थामी श्रमिकों की कमान 

धरने पर बैठे विधायक बेहड़ ने कहा कि एक जनप्रतिनिधि के रूप में श्रमिकों की समस्याएं सुनना और उनका समाधान करवाना उनका सर्वोच्च दायित्व है। उन्होंने सरकार व विश्वविद्यालय प्रशासन से तीखे शब्दों में सवाल पूछते हुए कहा कि लंबे समय से लंबित मांगों पर मौन रहना कहीं न कहीं गंभीर लापरवाही दर्शाता है।

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ठुकराल भी आए बेहड़ के समर्थन में—धरने को मिला राजनीतिक वजन

धरने की गूंज अब और तेज हो गई है। रुद्रपुर के पूर्व विधायक राजकुमार ठुकराल भी तिलक राज बेहेड़ के समर्थन में धरनास्थल पहुंच गए। ठुकराल ने श्रमिकों की मांगों को पूरी तरह जायज़ बताते हुए कहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन की उदासीनता अब बर्दाश्त से बाहर है।
उन्होंने बेहेड़ के कदम को “सराहनीय और समय की मांग” बताते हुए कहा कि कर्मचारियों के सम्मान और अधिकारों पर किसी प्रकार का समझौता स्वीकार नहीं।ठुकराल के पहुंचने से न केवल धरने की राजनीतिक ताकत बढ़ी, बल्कि विश्वविद्यालय प्रशासन पर दबाव भी और गहरा हो गया।

 

उधर, शुक्ला पहुँचे धामी दरबार

इधर, पूर्व विधायक राजेश शुक्ला मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मिलने देहरादून पहुँचे और श्रमिकों की समस्याओं को विस्तार से अवगत कराया। शुक्ला ने भी मांगों को न्यायोचित बताते हुए कहा कि सरकार को तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए, ताकि कर्मचारियों का आक्रोश और न बढ़े।

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नेताओं की रस्साकशी के बीच कहि दब न जाए श्रमिकों की आवाज़

धरनास्थल और राजनीतिक गलियारों में बढ़ते सक्रियता के बीच कर्मचारियों में यह चिंता भी साफ झलक रही है कि कहीं यह मुद्दा नेताओं की आपसी सियासी प्रतिस्पर्धा में न दब जाए। श्रमिकों का कहना है—
“हमें चाहिए समाधान… राजनीति नहीं।”
कर्मचारियों ने दोनों पक्षों से अपेक्षा की है कि वे राजनीतिक अंकगणित से ऊपर उठकर इस मुद्दे को मानवीय दृष्टि से देखें।

श्रमिकों की मांगें—और सरकार की चुप्पी

कर्मचारियों की प्रमुख मांगों में नियमितीकरण, वेतन विसंगतियों का समाधान, सुरक्षा मानकों का अनुपालन, कार्यदशा में सुधार और स्थायी नीतियों का गठन शामिल है। कई दौर की अपीलों के बावजूद अब तक किसी भी स्तर पर कोई ठोस कार्रवाई न होने का आरोप कर्मचारियों ने लगाया।

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क्या मिलेगा समाधान?

एक ओर विधायक धरने पर बैठकर सरकार पर दबाव बना रहे हैं, तो दूसरी ओर पूर्व विधायक सीधे मुख्यमंत्री तक मामला पहुंचा रहे हैं। ऐसे में सवाल यह है—
क्या श्रमिकों की समस्याओं पर शासन-प्रशासन अब जागेगा?
या यह संघर्ष और तेज़ होगा?

फिलहाल इतना तय है कि पंतनगर विश्वविद्यालय का यह आंदोलन अब एक बड़े जनमुद्दे का रूप ले चुका है—और समाधान के बिना शांत होने वाला नहीं।


 


 

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