एक दिन के लिए काशीपुर आ जाइए साहब… तभी भरेंगे यहाँ सड़कों के गड्ढे! काशीपुर वासियो की अब मुख्यमंत्री धामी से मार्मिक गुहार

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गड्ढों में समाया विकास: औद्योगिक नगरी काशीपुर बनी धूल-धक्कड़पुर!
राजू अनेजा, काशीपुर।इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या होगा जब केंद्र से लेकर नगर निगम तक भाजपा की सरकार होने के बावजूद औद्योगिक नगरी कहलाने वाला काशीपुर आज गड्ढों की नगरी बन चुका है। स्टेडियम रोड से लेकर रेलवे स्टेशन तक सड़कें जगह-जगह धंसी पड़ी हैं। बारिश में यही गड्ढे तालाब बन जाते हैं और धूप में इन्हीं से धूल के गुबार उड़ते हैं।अब हाल यह है कि स्टेडियम रोड से रेलवे स्टेशन तक का सफर आमजन के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं।


जनता की भावुक गुहार — “मुख्यमंत्री साहब, बस एक दिन के लिए काशीपुर आ जाइए!”

थकी-हारी जनता अब अपनी व्यथा छिपा नहीं पा रही।
लोगों का कहना है — “हमने सब देख लिया, अब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जी से बस एक गुज़ारिश है — एक दिन के लिए काशीपुर आइए, तब समझ आएगा कि विकास के नाम पर हमें क्या मिला — गड्ढे, धूल और बदहाली।

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लापरवाही की हद — हादसों का रोज़ाना खतरा

रामनगर से काशीपुर की तो बात छोड़ो साहब स्टेडियम से लेकर स्टेशन रोड पर बने गड्ढे अब हादसों के स्थायी केंद्र बन चुके हैं।रोजाना यहां से गुजरने वाले बाइक सवार फिसल रहे हैं, स्कूली बच्चे बस तक पहुंचने में गिरते-पड़ते हैं।पैदल चलने वाले हर कदम पर भगवान का नाम लेकर सड़क पार करते हैं।


विभाग बेलगाम — चीमा और बाली का पत्राचार भी बेअसर

ऐसा नहीं कि जनप्रतिनिधियों ने आंखें मूंद ली हों।क्षेत्रीय विधायक त्रिलोक सिंह चीमा और मेयर दीपक बाली ने कई बार संबंधित विभागों को पत्र लिखे, मरम्मत कार्यों के निर्देश दिए — पर नतीजा वही “ढाक के तीन पात”।
शहरवासियों का कहना है — “अफसर कुर्सियों पर तो हैं, पर ज़मीन पर कहीं नहीं।”
जनता पूछ रही है — जब छोटे कामों के लिए महीनों इंतजार करना पड़े, तो विकास के बड़े दावे आखिर किस काम के?

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विकास का नकाब उतर गया — अधिकारी फाइलों में दबे

विभागीय अफसर न तो स्थल निरीक्षण करते हैं और न ही समस्याओं पर कोई ठोस कदम।लोगों का कहना है — “जब विधायक और मेयर की चिट्ठियां ही फाइलों में दब जाएं, तो आम नागरिक की सुनवाई की उम्मीद किससे करें?”सड़क निर्माण, जल निकासी और सफाई व्यवस्था — हर जगह सुस्ती और संवेदनहीनता का बोलबाला।


विपक्ष भी गहरी नींद में — जनता खुद मैदान में

विडंबना यह कि सत्तापक्ष जवाबदेही से भाग रहा है और विपक्ष गहरी नींद में सोया है।
न धरना, न आंदोलन, न जनता की आवाज़ उठाने की कोशिश।
अब शहरवासी खुद सड़कों पर उतरने को तैयार हैं — “जब नेता चुप हैं, तो जनता ही अब अपनी लड़ाई खुद लड़ेगी।

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धामी के आने पर ही चमकती हैं सड़कें!

जनता अब तंज कसने लगी है —
“जब मुख्यमंत्री का दौरा तय होता है तो रातों-रात सड़कें चमक उठती हैं, डिवाइडर पेंट हो जाते हैं, और सफाई अभियान चल पड़ता है।
पर जब जनता रोज़ उन्हीं रास्तों से गुजरती है, तब विकास अंधा, अफसर बहरे और विभाग बेज़ुबान हो जाते हैं।


काशीपुर के लोगों का सवाल अब सीधा है —
“क्या विकास सिर्फ मुख्यमंत्री के आने पर होता है या जनता के जीने के लिए भी होना चाहिए?”


 

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