जौनपुर ब्लॉक का ऐतिहासिक राज मौण मेला: अगलाड़ नदी में वाद्ययंत्रों के साथ पकड़ी मछलियाँ, बारिश ने डाला खलल

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जौनपुर: उत्तराखंड के जौनपुर ब्लॉक का प्रसिद्ध ऐतिहासिक राज मौण मेला रविवार को उत्साह के साथ मनाया गया। क्षेत्र के लोगों ने पारंपरिक वाद्ययंत्रों के साथ अगलाड़ नदी में मछली पकड़ी। इस वर्ष, 16 गाँवों के लोगों ने टिमरू का पाउडर (मौण) नदी में डाला, जिसके बाद बड़ी संख्या में लोग मछली पकड़ने के लिए नदी में उतर गए।


 

ढोल-दमाऊं की थाप पर तांदी नृत्य और मछली पकड़ना

 

राजशाही के ज़माने से मनाए जाने वाले मौण मेले का शुभारंभ पूजा-अर्चना के साथ हुआ। ढोल-दमाऊं की थाप पर महिलाएँ और पुरुषों ने सामूहिक रूप से तांदी नृत्य किया। दोपहर करीब दो बजे ग्रामीणों ने मिलकर अगलाड़ नदी में टिमरू का पाउडर (मौण) डाला। मौण को नदी में डालते ही सैकड़ों की संख्या में लोग मछली पकड़ने नदी में उतर गए, लेकिन तेज़ बारिश और पानी के तेज़ बहाव के कारण लोग कम मात्रा में ही मछली पकड़ पाए। बारिश के कारण गत वर्षों की अपेक्षा इस वर्ष कम लोग मौण मेले में पहुँचे।

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मौण मेला समिति के अध्यक्ष महिपाल सजवाण ने बताया कि टिमरू के पाउडर से मछलियाँ कुछ देर के लिए बेहोश होती हैं, और इसी दौरान लोग मछलियों को पकड़ते हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि टिमरू के पाउडर से मछलियों को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुँचता है।

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सात पट्टियों की भूमिका और आपसी भाईचारे का प्रतीक

 

मौण मेले में सात पट्टियों के लोगों की मुख्य भूमिका होती है। प्रत्येक साल एक ही पट्टी के लोगों को मौण तैयार करने की जिम्मेदारी दी जाती है। इस वर्ष नदी में मौण डालने की जिम्मेदारी छज्यूला पट्टी के बंग्लों की कांडी, सैंजी, कांडीखाल, भटोली, चम्या, बनोगी, गांवखेत, भेडियान, घंडियाला, सरतली, कसोन, कांडा, रणोगी, तिमलियाल और पाली कुणा गाँवों की थी। मौण मेले के लिए गाँव के प्रत्येक परिवार को टिमरू का पाउडर तैयार करना होता है।

मौण मेले का त्योहार आपसी भाईचारे और क्षेत्र की एकता का प्रतीक माना जाता है। यह मेला कई दशकों से बिना किसी विशेष सुरक्षा व्यवस्था के संचालित होता आ रहा है। इस मौके पर गोपाल, सिया लाल, राजेंद्र, महिपाल राणा, सिकेंद्र रौछला, जयेंद्र सिंह, लुदर भंडारी, विरेंद्र वर्मा, विजय सिंह, दिपाल सिंह, नीरज रावत आदि कई गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे।

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यह मेला न केवल एक पारंपरिक आयोजन है, बल्कि यह क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत और सामुदायिक सौहार्द का भी प्रतीक है।