मजदूरी ने मिटाए हाथों के निशान… तो सिस्टम ने छीन ली थाली! भूखे पेट सोने को मजबूर काशीपुर के बुजुर्ग दंपत्ति

Labor erased their handprints… but the system snatched their plates away! An elderly couple from Kashipur was forced to sleep hungry.

खबर शेयर करें -

राजू अनेजा,काशीपुर। उम्रभर की कड़ी मजदूरी ने हाथों की लकीरें तो बहुत पहले ही घिस दी थीं, लेकिन इस माह हालात ऐसे बने कि सरकारी सिस्टम ने उनकी थाली तक छीन ली। बांसखेड़ा निवासी 70 वर्षीय जगन्नाथ और उनकी पत्नी दर्शन कौर इस बार सरकारी राशन से वंचित रह गए—मात्र इसलिए कि मशीन ने उनका अंगूठा नहीं पढ़ा।

 

डिपो पर बार-बार अंगूठा लगाया, मशीन ने हर बार ठुकराया

शनिवार सुबह दंपती सस्ते गल्ले की दुकान पहुंचे। पहला प्रयास—फेल।
दूसरा प्रयास—फेल।
तीसरा, चौथा, पाँचवाँ… मशीन को जैसे उनकी गरीबी से भी ज़्यादा कठोर होना था। न दर्शन कौर का अंगूठा माना, न जगन्नाथ का।

यह भी पढ़ें 👉  रानीखेत: स्याल्दे के सराईंखेत में कालिंका माता मंदिर मेले में उमड़ा आस्था का सैलाब, सजीव हुई गढ़-कुमौं की विरासत

डिपो संचालक का जवाब भी उसी मशीन जैसा ठंडा—
“निशान नहीं लग रहा तो राशन कैसे दें?”

कभी डिपो, कभी ब्लॉक—राहत कहीं नहीं

बुजुर्ग दंपती पूरे सप्ताह कभी डिपो, कभी ब्लॉक कार्यालय के चक्कर काटते रहे।
लेकिन न कहीं समाधान मिला, न कोई यह बताने को तैयार कि ऐसी स्थिति में गरीब क्या करे, कहाँ जाए

अंत्योदय कार्ड 2021 में बना था, तीन यूनिट का राशन इन्हीं के सहारे चलता है। लेकिन इस माह थैला खाली रहा… और रातें भूखे पेट कट रही हैं

यह भी पढ़ें 👉  गोवा नाइट क्लब अग्निकांड: टिहरी के सतीश राणा सहित उत्तराखंड के 5 लोगों की मौत, परिवार में पसरा मातम

तकनीक की तलवार आख़िर गरीब पर ही क्यों?

सिस्टम पारदर्शिता चाहता है, लेकिन क्या पारदर्शिता के नाम पर बुजुर्गों की भूख की अनदेखी ठीक है?
कई ग्रामीणों का कहना है कि मजदूरों, बुजुर्गों और मेहनतकश लोगों के हाथों में थंब इंप्रेशन अक्सर हल्के पड़ जाते हैं, और मशीनें उन्हें पहचानने से इनकार कर देती हैं।

यह भी पढ़ें 👉  उत्तराखंड: संविदा और उपनल कर्मचारियों के लिए खुशखबरी! नियमितीकरण और समान वेतन पर कट-ऑफ डेट आगे बढ़ाने पर मंथन

पर सवाल यह है—
क्या मशीन से बड़े हैं निशान… या पेट की भूख?

“हे राम! उम्रभर हाथ घिसे… अब थाली क्यों छिनी?”

दंपती की यह वेदना पूरे सिस्टम से सवाल करती है।
प्रशासन कब जागेगा?
राहत कब मिलेगी?
और ऐसे कितने बुजुर्ग थाली से वंचित होकर रामभरोसे जी रहे हैं?