दुर्भाग्य !गांव की सरकार चुनने का मौका आया, तो थमा दिया गया ओवरब्रिज का झुनझुना, पंचायत से फिर बाहर हुआ बिंदुखत्ता
Unfortunately! When the opportunity came to elect the village government, Bindukhatta was given the toy of an overbridge, Bindukhatta was again excluded from the Panchayat
राजू अनेजा, लाल कुआं।जब पूरा उत्तराखंड पंचायत चुनाव की गहमागहमी में डूबा हो, गांव-गांव में लोकतंत्र के उत्सव की तैयारी हो रही हो—ऐसे में बिंदुखत्ता की चुप्पी डरावनी सी लगती है। यहां ना जनचौपाल है, ना नामांकन की हलचल, ना प्रत्याशियों की दौड़-धूप और ना ही लोकतांत्रिक उल्लास। सिर्फ़ एक सवाल हवा में तैर रहा है — “हम कब तक लोकतंत्र से बाहर रहेंगे?”उत्तराखंड का बिंदुखत्ता एक ऐसा क्षेत्र है जो हर चुनाव में वोटिंग के समय पूर्ण भागीदारी करता है। सरकारें बनाने में यहां के मतदाता किसी से पीछे नहीं रहते। लेकिन जब बात ग्राम सरकार चुनने की आती है, तो यही जनता लोकतंत्र के चौखट से बाहर कर दी जाती है। ना पंचायत, ना जनप्रतिनिधि, ना निर्णय का हक और बदले में क्या मिला? एक बार फिर ओवरब्रिज का लॉलीपॉप।वह भी उस ओवरब्रिज जिसको चढ़ाने में कई बार सरकारी तंत्र फेल हो चुका हो।
जी हा बात हो रही है उस बिंदुखत्ता की जो केंद्र व प्रदेश में बनने वाली सरकार को बनवाने में अपनी अहम भूमिका निभाता है परन्तु अपने ही गांव की सरकार बनाने के समय इसको लोकतंत्र के बाहर खड़ा कर दिया जाता है।उत्तराखंड के गांव-गांव में पंचायत चुनाव को लेकर हलचल है,चप्पे-चप्पे पर लोकतंत्र की रौनक है ग्रामसभाएं सज रही हैं, गांव की सरकारें बनने जा रही हैं परन्तु बिन्दुखत्ता इस वक्त सन्नाटा पसरा हुआ है।यहां ना पंचायत है, ना प्रत्याशी और ना ही वो लोकतांत्रिक उत्साह जो बाकी प्रदेश में दिखता है।क्योंकि बिंदुखत्ता को फिर एक बार लोकतंत्र के इस पर्व से बाहर कर दिया गया है।ना चुनाव में भागीदारी, ना ग्रामसभा में निर्णय का अधिकार और इसके बदले में मिला क्या?ओवरब्रिज का लॉलीपॉप।जबकि बिंदुखत्ता वासियोकी वर्षों पुरानी मांग रही है हमें राजस्व गांव का दर्जा दो।लेकिन सरकारें हर बार बहाने बनाती रहीं,कभी वनभूमि का हवाला,कभी कानूनी उलझन,कभी प्रक्रिया चलने की कहानी और जब जनता ने बार-बार आवाज़ उठाई तो अब नया लॉलीपॉप तैयार कर दिया गया है ओवरब्रिज का।वही ओवरब्रिज, जिसकी घोषणा पहले भी कई बार हो चुकी है,जिसका सर्वे कई बार फेल हो चुका है,और जो आज तक धरातल पर नहीं उतर पाया है।यानी राजस्व दर्जे की मांग को टालने के लिए अब यहां के लोगो को एक अधूरी योजना का ताज थमा दिया गया।बिंदुखत्ता के लोगों का दर्द ये नहीं कि उन्हें ओवरब्रिज क्यों मिला,बल्कि ये है कि अब भी उन्हें उनका हक़ आखिर क्यों नहीं मिला?
चुनाव के समय राजस्व की बात,चुनाव बीतने पर खाली हाथ
हर चुनाव से पहले बिंदुखत्ता को विकास के सब्ज़बाग़ दिखाए जाते हैं। कभी राजस्व गांव का वादा, तो कभी वनग्राम की प्रक्रिया पूरी करने की झूठी तसल्लीऔर जब सवाल पंचायत चुनाव में हिस्सेदारी का आता है, तो सरकारें चुप्पी साध लेती हैं। फिर कोई अफसर आकर कह देता है कि “प्रक्रिया जारी है”, और कोई नेता “शीघ्र समाधान” का रटा-रटाया बयान दे देता है।
ग्रामवासियों का साफ संदेश – “अब झुनझुना नहीं, अधिकार चाहिए”
गांव की सरकार चुनने का अधिकार नहीं, लेकिन “विकास” के नाम पर ओवरब्रिज का एलान ज़रूर हो गया है। सवाल यह है कि क्या पुल से लोकतंत्र की खाई पाटी जा सकती है? क्या बिंदुखत्ता के लोग सिर्फ़ जाम में फंसे रहने के लिए हैं, और उनका भविष्य वोटबैंक की गिनती में रहकर भी वोट से बाहर रहेगा?
बिंदुखत्ता के ग्रामीण अब इस छलावे को पहचान चुके हैं।उनका कहना है ओवरब्रिज बाद में बनाना, पहले हमें राजस्व गांव घोषित करो।हमें सड़क नहीं, पहले संविधान में हमारी जगह चाहिए।
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