उत्तराखंड : नैनीताल में लगी एशिया की सबसे बड़ी मिरर टेलीस्कोप, कैसे करती है काम

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उत्तराखंडके नैनीताल में एशिया की सबसे बड़ी मिरर टेलीस्कोप लगाई गई है. ये टेलीस्कोप नैनीताल में देवस्थल में लगी है.

भारत में इस टेलीस्कोप का लगना इसलिए भी खास है क्योंकि भारत में खगोल शास्त्र का इतिहास सदियों पुराना है. भारत को खगोल शास्त्र में महत्वपूर्ण योगदान रहा है. 21 मार्च को उत्तराखंड की पर्यटक नगरी के नाम से मशहूर नैनीताल में आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीच्यूट ऑफ ऑब्जरवेशनल साइसेंस में एशिया की सबसे बड़ी इंटरनेशनल लिक्विड मिरर टेलीस्कोप का उद्घाटन हुआ.

टेलिस्कोप की क्या है खासियत?

आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीच्यूट ऑफ ऑब्जरवेशनल साइसेंस में लगी ये दूरबीन 4 मीटर व्यास की है. भारत ने इस दूरबीन को कनाडा और बेल्जियम के सहयोग से बनाया है. इस टेलीस्कोप में क्या खास है, इसकी जानकारी एरीज के निदेशक प्रोफेस दीपांकर बैनर्जी ने दी. उन्होंने बताया कि खगोलीय प्रेक्षण के लिए दुनिया में पहली बार इस दूरबीन का इस्तेमाल किया जा रहा है. ये टेलिस्कॉप अंतरिक्ष के कई रहस्यों को उजागर करेगी. ये पांच सालों तक काम करेगी.

टेलीस्कोप से रिसर्च में मिलेगी मदद

एशिया की सबसे बड़ी टेलीस्कोप की टेस्टिंग हो चुकी है और उसके बेहतर परिणाम सामने आए हैं. ये टेलीस्कोप 3.6 मीटर की ऑप्टिकल दूरबीन से होने वाले अध्ययनों के शोध में मदद करेगी. एरीज के पूर्व निदेशक प्रोफेसर ने भी इस टेलीस्कोप के महत्व को रेखांकित किया. उन्होंने कहा कि इस टेलीस्कोप के लगने से अंतरिक्ष संबंधी शोध कार्य तेजी से होने लगेंगे. ये टेलीस्कोप 10 से 15 जीबी का डाटा जेनरेट कर सकती है जो अंतरिक्ष के रहस्यों को बेहतर तरीके से समझाने में काफी मदद होगा, तारों और उल्कापिंडों के बारे में इससे नई जानकारियां सामने आएंगी.

नैनीताल में क्यों लगाई टेलीस्कोप?

नैनीताल के देवस्थल में एशिया की सबसे बड़ी टेलीस्कोप को लगाने की कुछ महत्वपूर्ण वजहें हैं. देवस्थल साइट पर लगभग 200 दिन आसमान साफ रहता है. इस वजह से इस जगह से आसमानी हलचलों पर नजर रखना ज्यादा मुफीद होता है. ऊंचाई में होने की वजह से बादल भी कम बनते है.

एशिया की सबसे बड़ी टेलीस्कोप की बात करें तो इसमें तीन घटक हैं. पहला कटोरा, जिसमें पारा(तरल धातु) होता है. इसमें एक हवा के दबाव से चलने वाली मोटर होती है, जिस पर तरल दर्पण टिका होता है. इसके अलावा एक मोटर को चलाने वाला सिस्टम होता है, जो घूमते समय तरल दर्पण दूरबीन की सतह से एक पर्वलायिक आकार लेती है. ये आकार प्रकाश को केंद्रित करने के लिए आदर्श होता है.