बरबादी के बाद जागे साहब, अब चैनल से धो रहे हाथ ! मानसून विदाई पर बचाव के नाम पर हाई प्रोफाइल ड्रामा शुरू

After the destruction, the boss woke up, now he is washing his hands off the channel! High profile drama begins in the name of rescue on the departure of monsoon

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राजू अनेजा, लालकुआं ।मानसून ने तबाही मचाई, किसानों की जमीनें नदी में समा गईं, तटबंध ढह गए—उस वक्त जिम्मेदार अफसर गहरी नींद में सोए रहे। अब जबकि मानसून विदाई की दहलीज पर है और हालात सामान्य हो चले हैं, प्रशासन पोकलैंड मशीनें लगाकर चैनल बनाने और तटबंध खड़े करने का ड्रामा रच रहा है।

हर साल वही ढर्रा

ग्रामीणों का कहना है कि ऐसा पहली बार नहीं हो रहा। हर बरसात में गौला अपना विकराल रूप दिखाती है और खेत-खलिहान से लेकर आशियाने तक अपनी भेंट चढ़ा लेती है। इस बार भी हालात कुछ अलग नहीं रहे। नदी के तेज बहाव ने जहां किसानों की फसलें और जमीन बहा दीं, वहीं करोड़ों खर्च से बनाए गए तटबंध भी एक झोंक तक नहीं झेल पाए। ग्रामीणों का आरोप है कि करोड़ों की लागत से बनने वाले ये तटबंध हर साल खानापूर्ति का जरिया बन जाते हैं।

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ग्रामीणों का गुस्सा

ग्रामीण साफ कहते हैं—“जब खेत और मकान बह गए, तब किसी ने हमारी सुध नहीं ली। अब कागजों में खानापूर्ति करने का क्या फायदा?”
बिंदुखत्ता, रावत नगर, चौड़ाघाट और श्रीलंका टापू में भारी भू-कटाव हुआ। किसानों की दर्जनों बीघा भूमि नदी में समा गई। हालात ऐसे बने कि रावत नगर के लोगों ने खुद ही सीमेंट की बोरियों में आरबीएम भरकर अस्थायी दीवारें खड़ी कर डालीं। लेकिन प्रशासन तब हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा।

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करोड़ों बहाए, समाधान नहीं

अब जबकि मानसून विदाई पर है, प्रशासन चैनल निर्माण में जुटा है। इस पर करीब 10 लाख रुपये खर्च का अनुमान है। ग्रामीणों का कहना है कि पिछले दस वर्षों में बाढ़ सुरक्षा के नाम पर करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाए गए, लेकिन नतीजा शून्य ही रहा। हर साल बरसात से पहले कागजी कार्रवाई और खानापूर्ति, फिर पहली ही बाढ़ में सब बह जाता है।

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सिंचाई विभाग की सफाई

एई सिंचाई विभाग अमित बंसल का कहना है कि गौला नदी का रुख आबादी की ओर हो गया था। इसे डाइवर्ट करने के लिए चैनल बनाया जा रहा है। लागत का अंतिम आकलन कार्य पूरा होने पर सामने आएगा।

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