बाजपुर कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्री: एक गंभीर स्थिति पर विचार
बाजपुर: बाजपुर कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्री, जिसकी स्थापना 16 फरवरी 1959 को भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा की गई थी, आज अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। फैक्ट्री की स्थापना किसानों की आय बढ़ाने, स्थानीय लोगों को रोजगार देने, शहर को विकसित करने और एक नया औद्योगिक नगर बसाने के उद्देश्य से की गई थी, लेकिन वर्तमान में यह अपने मूल लक्ष्यों से भटकती दिख रही है।
कर्मचारियों का वेतन अटका, मिल कर्ज के बोझ तले
ह्यूमन राइट मिशन, बाजपुर के उपाध्यक्ष डॉ. सौरभ परमार ने फैक्ट्री की वर्तमान स्थिति पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। उनके अनुसार, पिछले 5 महीनों से कर्मचारियों को वेतन नहीं मिला है, जिससे उनका जीवन-यापन बेहद मुश्किल हो गया है। डॉ. परमार का कहना है कि इसका पूरा उत्तरदायित्व शासन और प्रशासन दोनों पर आता है।
उन्होंने आरोप लगाया कि समय-समय पर इस मिल के आधुनिकीकरण के नाम पर नेतागण और अधिकारीगण ने केवल इसका शोषण किया है। जो मिल कभी किसानों की रीढ़ मानी जाती थी, आज वह केवल कर्ज के बोझ तले दबी हुई है। किसान परेशान हैं, मजदूर पीड़ित हैं, और उनकी सुनने वाला कोई नहीं है।
कोऑपरेटिव सेक्टर की बदहाली और निजीकरण की आशंका
डॉ. परमार ने इस बात पर जोर दिया कि जहाँ देश में अधिकांश प्राइवेट इंडस्ट्रीज़ मुनाफे में हैं, वहीं कोऑपरेटिव सेक्टर की फैक्ट्रियां घाटे में चल रही हैं, क्योंकि शासन और प्रशासन में बैठे लोग ईमानदारी से कार्य नहीं कर रहे हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि जब तक एक मजबूत कार्ययोजना नहीं बनाई जाएगी, तब तक सुधार संभव नहीं है।
उत्तराखंड में बाजपुर के अलावा:
- काशीपुर चीनी मिल बंद है।
- गदरपुर चीनी मिल बंद है।
- किच्छा की स्थिति भी ठीक नहीं है।
- सितारगंज की हालत भी चिंताजनक है।
डॉ. परमार का कहना है कि भारत एक कृषि प्रधान देश है और किसानों की उपज को सही दाम, सही समय पर भुगतान और सहूलियत देना सरकार का धर्म है। लेकिन आज सरकारें इस ओर ध्यान नहीं दे रही हैं, बल्कि रेलवे, बिजली, शिक्षा और अब चीनी मिलों जैसी हर चीज का निजीकरण कर रही हैं।
पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल पर चिंता
उन्होंने PP (पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप) मॉडल को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की है, जिसका अर्थ उनके अनुसार “सरकारी संपत्तियों को औने-पौने दामों में कुछ नजदीकी उद्योगपतियों को सौंप देना” है। उनका मानना है कि ऐसे उद्योगपति कुछ वर्षों में लाभ लेकर फैक्ट्रियां बंद कर देते हैं और भाग जाते हैं, जिससे न तो जनता को, न किसान को और न ही मजदूर को लाभ होता है।
डॉ. परमार ने कहा कि सरकार का उद्देश्य जनता को रोजगार देना, किसानों को संतुष्ट रखना और शहरों का विकास करना होना चाहिए, लेकिन वर्तमान स्थिति में कर्मचारियों को वेतन तक नहीं मिल रहा और वे अपने बच्चों की फीस नहीं भर पा रहे हैं। उन्होंने आशंका जताई कि यदि यही हालात रहे तो इस चीनी मिल को भी निजी हाथों में सौंप दिया जाएगा।
सुधार के लिए अपील
डॉ. सौरभ परमार ने सत्ता में बैठे नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों से करबद्ध निवेदन किया है:
- इस फैक्ट्री के आधुनिकीकरण पर गंभीरता से काम करें।
- कर्मचारियों के वेतन का तत्काल भुगतान करें।
- इस सार्वजनिक संपत्ति को निजी हाथों में सौंपने से बचाएं।
उन्होंने चेतावनी दी कि यह चीनी मिल एक सार्वजनिक उपक्रम है और इसका शोषण करने वाले कभी सुखी नहीं रहते, न ही रहेंगे। अंत में उन्होंने कहा, “बनाने में बरसों लगते हैं, पर बिगाड़ने में दो मिनट। अभी भी समय है – नेताओं से निवेदन है कि सुधरें, और जनता की आवाज़ को गंभीरता से लें, अन्यथा परिणाम बहुत गंभीर होंगे।”
अपने मोबाइल पर ताज़ा अपडेट पाने के लिए -
👉 हमारे व्हाट्सएप ग्रुप को ज्वाइन करें