दिल्ली में भाजपा का 26 साल का वनवास, क्या AAP को हटा सकेगी पार्टी?

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भाजपा लोकसभा चुनाव में दिल्ली में लगातार तीन बार सभी सातों सीटों पर जीत दर्ज करने का रिकॉर्ड बना चुकी है। दिल्ली के नगर निगम में 15 साल लगातार सत्ता में रहने के बाद भी जब पिछली बार चुनाव हुए, तब उसने लगभग आधी सीटों पर जीत दर्ज कर अपनी सांगठनिक क्षमता का परिचय दिया था।

लेकिन इसके बाद भी भाजपा दिल्ली विधानसभा में 1993 के बाद आज तक कोई सफलता दर्ज नहीं कर पाई है। आज भी उसे दिल्ली विधानसभा चुनाव में अपने 26 साल का वनवास समाप्त होने का इंतजार है। दिल्ली विधानसभा के चुनाव अगले वर्ष जनवरी-फरवरी माह में होंगे। इस समय जबकि अरविंद केजरीवाल सरकार शराब घोटाले में फंसी हुई है, अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन जैसे उसके बड़े नेता जेल में हैं, क्या इस बार भाजपा अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद से हटा सकेगी?

लोकसभा चुनाव 2024 में सभी सीटें जीतने के बाद और दिल्ली विधानसभा चुनाव के पहले सात जुलाई को दिल्ली भाजपा ने जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में अपनी विस्तारित कार्यकारिणी की बैठक की। बैठक में 350 के करीब प्रमुख पदाधिकारियों के अलावा सभी बूथ अध्यक्षों को भी आमंत्रित किया गया था। बैठक में बूथ स्तर तक के कार्यकर्ताओं को शामिल करने का उद्देश्य उन्हें ऊर्जा से भरना था, जिससे वे अपनी संगठन के क्षमता का उपयोग केंद्र सरकार के कार्यों को जनता तक ले जाने के लिए कर सकें। पार्टी ने इस बार अरविंद केजरीवाल की विभिन्न क्षेत्रों में कथित ‘भ्र्ष्टाचार और असफलता’ को अपना हथियार बनाने का लक्ष्य बनाया है।

आप-कांग्रेस का गठजोड़ विफल
लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस का गठजोड़ बुरी तरह असफल साबित हुआ है। दोनों पार्टियों ने मिलकर चुनाव लड़ा था, लेकिन इसके बाद भी वे एक भी सीट पर भाजपा को रोकने में असफल साबित हुए। यहां तक की कांग्रेस के बड़े नेता जेपी अग्रवाल और कन्हैया कुमार भी गठबंधन के लिए कोई अच्छी खबर लाने में असफल रहे।इससे सबक लेते हुए कांग्रेस ने एकतरफा आम आदमी पार्टी से अलग होकर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। आम आदमी पार्टी नेता गोपाल राय ने भी दिल्ली विधानसभा चुनाव अलग होकर लड़ने की घोषणा कर दी है। ऐसे में भाजपा के लिए यह एक अच्छा अवसर हो सकता है कि जब गैर भाजपा विरोधी वोटों का बंटवारा आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच होगा, तब बीच में उसके लिए सफलता की संभावनाएं बन सकती हैं।

हालांकि दिल्ली में आम आदमी पार्टी के उभार के बाद जनता बिना गठबंधन के भी पूरी तरह दो खेमों में बंट जाती रही है। भाजपाई मतदाता पूरी तरह उसके साथ जुड़ जाते हैं, तो गैर भाजपाई मतदाता पूरी तरह अरविंद केजरीवाल के साथ एकजुट हो जाते रहे हैं। इसमें कांग्रेस को सबसे ज्यादा नुकसान होता है, और उसे पिछले कई चुनावों में किसी एक सीट पर भी सफलता नहीं मिलती रही है, जबकि वोटों के ध्रुवीकरण के कारण भाजपा को भी भारी नुकसान होता रहा है। हालांकि, भाजपा नेताओं को उम्मीद है कि इस बार भ्रष्टाचार में घिरी अरविंद केजरीवाल सरकार बुरी तरह अलोकप्रिय हो चुकी है और अब जनता उसका साथ नहीं देगी। भाजपा का मानना है कि नगर निगम चुनाव में भी इसी कारण उसे मजबूत सफलता मिली थी और अब विधानसभा चुनाव में भी वह अच्छी सफलता हासिल करने में सफल रहेगी।

मुसलमानों की भूमिका
दिल्ली में इस बार भी मुसलमान मतदाताओं की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रहने वाली है। यदि पिछले चुनाव की तरह इस बार भी वे आम आदमी पार्टी के साथ जुड़े रहते हैं, तो केजरीवाल को इसका फायदा मिल सकता है।लेकिन जिस तरह राष्ट्रीय स्तर पर मुसलमान ने कांग्रेस के साथ एकजुटता दिखाई है, यदि उस तरह की कोशिश दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी हुई तो कांग्रेस को इसका बड़ा लाभ मिल सकता है। यदि ऐसा हुआ तो केजरीवाल को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है। यदि ऐसा हुआ तो वोटों में बिखराव से भाजपा को भी लाभ मिलने की संभावना बन सकती है। लेकिन रणनीतिक वोटिंग करने के लिए मशहूर मुस्लिम मतदाता क्या रुख अपनाते हैं यह देखना महत्वपूर्ण होगा।

केजरीवाल का भ्र्ष्टाचार उजागर- सचदेवा
भाजपा की यह रणनीति प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा और केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल के बयानों में साफ दिखाई पड़ी। सचदेवा ने कहा कि एक तरफ केंद्र सरकार ने हजारों करोड़ की योजनाओं को लागू कर दिल्ली की स्थिति को बेहतर बनाने का काम किया, उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूत पहचान दिलाने की कोशिश की, वहीं कोरोना काल के दौरान केजरीवाल ने अपने आवास के निर्माण पर करोड़ों रुपये ख़र्च किये। उन्होंने आरोप लगाया कि दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार ने जानबूझकर लोगों को आयुष्मान योजना का लाभ नहीं लेने दिया। इससे स्पष्ट होता है कि केजरीवाल की प्राथमिकता अपने स्वार्थ की थी, जनता के हित उनकी प्राथमिकता में कभी नहीं रहे।

केंद्रीय मंत्री ने कार्यकर्ताओं पर जताया भरोसा
केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि उन्होंने 40 साल तक दूसरे लोगों को चुनाव लड़वाने का काम किया था। इस बार पहली बार वे स्वयं चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतरे थे। विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने हर विधानसभा क्षेत्र में 15-20 हजार से ज्यादा वोटों के साथ जीत दर्ज की। इसका कारण केवल यह था कि कार्यकर्ताओं ने यह चुनाव अपने कंधों पर उठा लिया और उन्हीं के बल पर उन्हें यह बड़ी जीत मिली। उन्होंने दिल्ली के कार्यकर्ताओं से भी उसी तरह की जीत की कोशिश करने की अपील की। भाजपा नेताओं की रणनीति से यह समझ आता है कि उनका उद्देश्य कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहित कर जनता के साथ जुड़ने की है।

 

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