“प्यार में अंधी लड़की”: एक विनाशकारी प्रेम और रिश्तों पर चिंतन

खबर शेयर करें -

कवि गोकुलानंद जोशी अपनी मार्मिक कविता “प्यार में अंधी लड़की” के माध्यम से प्रेम की विकृतियों, मानवीय रिश्तों की जटिलता और नैतिक मूल्यों के महत्व पर गहरा चिंतन प्रस्तुत करते हैं। यह कविता प्रेम के नाम पर की गई एक निर्मम हत्या की घटना को दर्शाती है और इसके सामाजिक व पारिवारिक परिणामों पर प्रकाश डालती है।

कविता

प्यार में अंधी हुई एक लड़की,
प्रेम की प्यास में सुहाग को मार दी गोली।

क्यों बनी तू इतनी निर्दय?
क्यों छीन लिया बुढ़ापे का दीपक?
क्या बिगाड़ा था उसने तेरा?
क्यों उतारा उसे मौत के घाट?

हे निर्दय!
तूने मां-बाप से उनका बेटा छीना,
बहन से उसका प्यारा भाई छीना,
भाभी से देवर का सहारा छीन लिया,
भाई से भाई को तूने दूर कर दिया।

सब कुछ तूने एक पल में मिटा डाला।
किसी को डाला ड्रम में,
किसी को मारा जंगल में,
किसी के किए इक्‍कीस टुकड़े,
किसी को फेंका गहरी खाई में।

इतनी निष्ठुर कैसे हो गई तू?
क्या तेरे हाथ भी न कांपे?
प्रेम के चक्कर में तूने सब कुछ मिटा डाला,
बेटा-बेटी के सिर से पिता की छाया छीन ली।

यह भी पढ़ें 👉  जौनपुर ब्लॉक का ऐतिहासिक राज मौण मेला: अगलाड़ नदी में वाद्ययंत्रों के साथ पकड़ी मछलियाँ, बारिश ने डाला खलल

अब मत पूछो —
घर-गृहस्थी का क्या हुआ?

एक बात है जो ज़रूरी,
दिल की बात जो रह गई अधूरी।
कहीं किसी पर दिल तो न लगा बैठी?

अब एक सवाल मां-बाप से भी —
जब बेटी को किताब दी थी हाथों में,
तब क्यों न समझा मन का भटकाव?

बेटी को इश्क हुआ स्कूल के विद्यार्थियों से,
कहां थे तुम उस वक्त?

क्यों न रखा बेटी पर ध्यान,
जो आज देखना पड़ा ऐसा दिन?

पिता ने तो चुना था एक दूल्हा,
बोला — “यह तुझे भाएगा।”
पर जब मनचाहा साथी न मिला,
तो क्यों उठाया ऐसा क़दम?

कविता का केंद्रीय संदेश

यह कविता एक शक्तिशाली चेतावनी है कि प्रेम को हमेशा शुद्ध, पवित्र और जीवनदायक होना चाहिए, न कि विनाशकारी। कवि उन रिश्तों के महत्व को रेखांकित करते हैं जिन्हें एक पल में नष्ट कर दिया गया, और उन निर्णयों के भयानक परिणामों को सामने लाते हैं जो भावनाओं के अंधानुकरण में लिए जाते हैं। यह कविता माता-पिता के रूप में हमारी जिम्मेदारियों को समझने के लिए भी प्रेरित करती है, ताकि बच्चों को सही मार्गदर्शन मिल सके।

यह भी पढ़ें 👉  नैनीताल: इंटरनेट मीडिया दोस्त पर दुष्कर्म और आपत्तिजनक वीडियो वायरल करने का आरोप, FIR दर्ज

 

मानवीय रिश्तों की जटिलता और नैतिक मूल्यों की उपेक्षा

 

कवि गोकुलानंद जोशी इस कविता के माध्यम से समाज को यह चेतावनी देना चाहते हैं कि यदि हम पारिवारिक जिम्मेदारियों और नैतिक मूल्यों की उपेक्षा करेंगे, तो इसके परिणाम अत्यंत विनाशकारी हो सकते हैं। प्रेम के नाम पर होने वाली हिंसा और उसके बाद परिवार पर टूटने वाले दुखों का चित्रण करते हुए, वे समाज को आत्मचिंतन के लिए प्रेरित करते हैं।

कविता में, प्रेम में अंधी हुई एक लड़की अपने सुहाग (पति) की हत्या कर देती है। कवि प्रश्न करते हैं कि वह इतनी निर्दयी क्यों हो गई, जिसने एक परिवार से उनका बेटा, बहन से भाई, भाभी से देवर और बच्चे से पिता छीन लिया। कविता उन भयानक कृत्यों को भी दर्शाती है जो प्रेम के नाम पर किए जा रहे हैं – किसी को ड्रम में डालना, जंगल में मारना, 21 टुकड़े करना, या गहरी खाई में फेंकना। कवि पूछते हैं कि क्या उसके हाथ भी नहीं काँपे जब उसने यह सब किया।


 

माता-पिता की भूमिका पर सवाल

 

यह भी पढ़ें 👉  उत्तराखंड में बारिश का कहर: उफनती नदी में गिरा वाहन, ड्राइवर को ग्रामीणों ने बचाया; चारधाम यात्रा स्थगित

कविता केवल लड़की की क्रूरता पर ही केंद्रित नहीं है, बल्कि यह माता-पिता की भूमिका पर भी सवाल उठाती है। कवि पूछते हैं कि जब बेटी को किताबों के साथ भेजा गया था, तब माता-पिता ने उसके मन के भटकाव को क्यों नहीं समझा। जब बेटी को स्कूल के विद्यार्थियों से इश्क हुआ, तो उस समय माता-पिता कहाँ थे? उन पर ध्यान क्यों नहीं दिया गया, जिसकी वजह से उन्हें आज ऐसा दिन देखना पड़ा? पिता द्वारा चुने गए दूल्हे को ठुकराकर, जब मनचाहा साथी न मिला तो लड़की ने ऐसा आत्मघाती और विनाशकारी कदम क्यों उठाया, यह भी कविता में एक महत्वपूर्ण प्रश्न है।

कुल मिलाकर, गोकुलानंद जोशी अपनी कविता के माध्यम से मानवीय रिश्तों की जटिलता, प्रेम के सच्चे अर्थ, पारिवारिक जिम्मेदारियों और नैतिक मूल्यों के महत्व पर गहरा चिंतन प्रस्तुत करते हैं, जो हमें समाज के इन पहलुओं पर गंभीरता से सोचने पर मजबूर करता है।