‘प्रैक्टिस मैच में नेता आते नहीं, फाइनल में बन जाते हैं कैप्टन’ – कांग्रेस नैनीताल जिलाध्यक्ष राहुल छिमवाल

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कांग्रेस के जिलाध्यक्षों की दिल्ली में हुई महत्वपूर्ण बैठक में शुक्रवार को उत्तराखंड का नंबर आया, जहां नैनीताल जनपद से पार्टी की मजबूती को लेकर दिए गए सुझावों ने पार्टी की अंदरूनी खींचतान और संगठनात्मक कमजोरियों को भी हाईकमान के सामने उजागर कर दिया.

बैठक में नैनीताल जिलाध्यक्ष राहुल छिमवाल को मिले दो मिनट के भीतर उन्होंने कांग्रेस के भीतर की हकीकत और कार्यकर्ताओं की उपेक्षा को खुलकर सामने रखा.

जिलाध्यक्ष छिमवाल ने संगठन की जमीनी सच्चाई को क्रिकेट की भाषा में बयान करते हुए कहा, “प्रैक्टिस मैच में जो नेता नहीं आते, वे फाइनल में कप्तान बनकर उतर जाते हैं.” यह तंज उन चेहरों पर था जो चुनाव के वक्त अचानक सक्रिय होकर टिकट पा जाते हैं, जबकि जमीनी कार्यकर्ता केवल दर्शक की भूमिका में रह जाते हैं. यह बयान कांग्रेस के भीतर चल रही गुटबाजी और अवसरवादिता पर तीखा हमला माना जा रहा है.

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क्यों उठे सवाल
बैठक में यह भी बताया गया कि किस तरह जिला कमेटियों को केवल दिखावे तक सीमित कर दिया गया है. पहले जहां 1970 के दशक में जिला कमेटी का सुझाव टिकट वितरण में निर्णायक होता था, अब वह प्रक्रिया केवल औपचारिकता बनकर रह गई है. जिलाध्यक्ष की राय सबसे आखिर में ली जाती है या कभी-कभी तो ली ही नहीं जाती.

बैठक में यह भी सुझाव दिया गया कि जो पदाधिकारी पद छोड़ते हैं, उन्हें ‘भूतपूर्व’ घोषित कर संगठन से अलग न किया जाए, बल्कि उन्हें नई जिम्मेदारी देकर सक्रिय बनाए रखा जाए. साथ ही संगठन के खिलाफ बोलने वाले जनप्रतिनिधियों पर कार्रवाई का अधिकार भी जिला कमेटियों को दिया जाए, ताकि अनुशासन बना रहे14

इन मुद्दों पर जताई सहमति
नैनीताल से आए सुझावों में पार्टी के भीतर सक्रिय ‘स्लीपर सेल’ की ओर भी इशारा किया गया. कहा गया कि पार्टी के भीतर कुछ ऐसे तत्व भी हैं जो सामने तो कांग्रेस के साथ हैं, लेकिन व्यवहार और रणनीति में विपक्ष की मदद करते नजर आते हैं. यह मुद्दा सुनते ही कई अन्य जिलों के प्रतिनिधियों ने भी सहमति जताई, जिससे साफ हो गया कि यह समस्या केवल नैनीताल तक सीमित नहीं है

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बैठक में साफ तौर पर यह बात सामने आई कि कांग्रेस के हारने का सबसे बड़ा कारण उसकी खुद की अंदरूनी खींचतान है. जिला स्तर पर चल रही गुटबाजी, कार्यकर्ताओं की उपेक्षा और ऊपर से थोपे गए निर्णय पार्टी को लगातार कमजोर कर रहे हैं. कार्यकर्ता हताश हैं और नेतृत्व से दूरी महसूस कर रहे हैं. ऐसे में जब चुनाव आते हैं, तब तक कार्यकर्ताओं का मनोबल गिर चुका होता है, और बाहरी चेहरों को टिकट देकर पार्टी खुद अपनी जड़ें काट लेती है.

सुधार पर दिया गया जोर
बैठक में जिलाध्यक्षों की राय से एक बात स्पष्ट हो गई कि यदि कांग्रेस को आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों में मजबूती से लड़ना है, तो उसे सबसे पहले अपने संगठनात्मक ढांचे को सुधारना होगा. कार्यकर्ताओं को सम्मान, अधिकार और जिम्मेदारी देकर ही पार्टी को दोबारा मजबूत किया जा सकता है.

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दिल्ली की बैठक में कई राज्यों के जिलाध्यक्षों ने हिस्सा लिया, लेकिन नैनीताल की तरफ से पेश की गई तस्वीर ने यह दिखा दिया कि कांग्रेस के भीतर जमीनी स्तर पर कितनी खामियां हैं और कैसे आपसी खींचतान जीत को हार में बदल देती है. अब यह हाईकमान पर निर्भर है कि वह इन सुझावों को कितनी गंभीरता से लेता है और क्या सच में पार्टी को भीतर से सुधारने की पहल करता है.

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