लालकुआँ: बिन्दुखत्ता को राजस्व गाँव बनाने की मांग को लेकर एकदिवसीय धरना

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लालकुआँ तहसील प्रांगण में बिन्दुखत्ता वनाधिकार समिति द्वारा आयोजित एकदिवसीय धरना कार्यक्रम, जिसे ‘चाय पर चर्चा’ नाम दिया गया, में सैकड़ों ग्रामीणों ने शिरकत की। ग्रामीणों ने राज्य सरकार से बिन्दुखत्ता को राजस्व गाँव घोषित करने की तत्काल मांग की।

📌 प्रदर्शनकारियों की मुख्य माँगे और शिकायतें

  • तत्काल अधिसूचना जारी करने की मांग: प्रदर्शनकारियों ने मांग की कि राज्य सरकार तत्काल अधिसूचना जारी करे।

  • प्रशासन के प्रति नाराजगी: प्रदर्शनकारियों ने इस बात पर गहरी नाराजगी जताई कि पूर्व जिलाधिकारी द्वारा राजस्व गाँव बनाने संबंधी अधिसूचना शासन को भेजे जाने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई

  • सवाल: वक्ताओं ने सवाल उठाया कि जब पूर्व जिलाधिकारी ने पूरी पत्रावली शासन को प्रेषित कर दी थी, तो अधिसूचना जारी करने के बजाय जिलाधिकारी को ही कार्रवाई का निर्देश क्यों दिया गया।

  • पत्रावली की स्थिति: वनाधिकार समिति द्वारा अब तक किए गए कार्यों की जानकारी दी गई। समिति के पदाधिकारियों ने बताया कि जिला स्तरीय समिति से स्वीकृति के बाद पत्रावली शासन को भेजी जा चुकी है, लेकिन एक वर्ष से अधिक समय बीतने के बावजूद कोई प्रगति नहीं हुई है।

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⚖️ वनाधिकार कानून और राजस्व गाँव की प्रक्रिया

वक्ताओं ने राजस्व गाँव बनाने की प्रक्रिया को लेकर दो कानूनों का उल्लेख किया:

  • वन संरक्षण अधिनियम 1980 (Forest Conservation Act): इसे राजस्व गाँव बनाने की जटिल प्रक्रिया बताया गया है। इस कानून के अनुसार, सरकार को उतनी ही वन भूमि को राजस्व भूमि में बदलने के बाद समकक्ष भूमि लगाकर 40 वर्ष तक संरक्षण करना पड़ता है, जो बेहद जटिल और समय लेने वाला है।

  • वन अधिकार अधिनियम 2006 (Forest Rights Act): प्रदर्शनकारियों ने जोर देकर कहा कि इस अधिनियम की धारा 3(1)(h) के प्रावधानों के तहत वन ग्रामों को सीधे राजस्व ग्राम में तब्दील करने की व्यवस्था है, जिसमें बिना अतिरिक्त भूमि लगाए की ज़रूरत नहीं है। इससे न केवल अधिसूचना जल्द जारी हो सकती है, बल्कि केंद्र और राज्य सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ भी सीधे ग्रामीणों तक पहुँच सकता है।

  • अन्य राज्यों की स्थिति: वक्ताओं ने बताया कि पूरे देश में इस अधिनियम के तहत हजारों वन ग्रामों को राजस्व गाँव का दर्जा मिल चुका है, लेकिन उत्तराखंड में प्रगति धीमी है।

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⚠️ राजनीतिक दाँव-पेंच और चेतावनी

  • राजनीतिक दाँव-पेंच का आरोप: प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि बिन्दुखत्ता की यह लड़ाई राजनीतिक दलों के वोट बैंक की राजनीति में फँसकर रह गई है। उन्होंने कहा कि जनता को भरमाया जा रहा है, जबकि उन्हें वास्तव में भूमि स्वामित्व और विकास योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए।

  • आक्रोश: धरने में लोगों ने चिंता जताई कि क्या यह मुद्दा राजनीतिक दाँव-पेंच में उलझकर रह जाएगा।

  • चेतावनी: वक्ताओं ने चेतावनी दी कि यदि शीघ्र अधिसूचना जारी नहीं की गई तो आंदोलन को और तेज किया जाएगा।

  • मांग: वक्ताओं ने मांग की है कि सरकार वन अधिकार अधिनियम का सहारा लेकर शीघ्र अधिसूचना जारी करे, ताकि ग्रामीणों को न्याय मिल सके।

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धरना कार्यक्रम में बिन्दुखत्ता से जुड़े तमाम राजनीतिक एवं स्वयंसेवी कार्यकर्ताओं, मातृशक्ति, कांग्रेस, भाजपा, पूर्व सैनिक संगठन और वनाधिकार समिति से जुड़े लोगों ने शिरकत की और जल्द से जल्द बिन्दुखत्ता को राजस्व गाँव बनाने के लिए सख्त कदम उठाने की सरकार से मांग की।