उत्तराखंड वन भूमि पर अवैध कब्जा: सुप्रीम कोर्ट सख्त, 2866 एकड़ भूमि हड़पने पर सरकार को फटकार
उत्तराखंड में 2866 एकड़ अधिसूचित वन भूमि पर निजी कब्ज़ों के बेहद गंभीर मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। कोर्ट ने इस अवैध कब्ज़े को ‘पर्यावरण के लिए खतरा’ और ‘व्यवस्थित हड़प’ बताया, जो राज्य की नाजुक हिमालयी इकोलॉजी को तबाह कर सकता है।
🏛️ सुप्रीम कोर्ट की तीखी टिप्पणी और आदेश
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने इस मामले में राज्य सरकार को ‘मूक दर्शक’ बताकर कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए इस मामले का स्वतः संज्ञान लिया और कई महत्वपूर्ण आदेश दिए:
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जांच कमेटी का गठन: कोर्ट ने मामले की जांच के लिए कमेटी गठित करने का आदेश दिया।
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रिपोर्ट: मुख्य सचिव और प्रधान वन संरक्षक इस मामले की जांच रिपोर्ट कोर्ट को सौंपेंगे।
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स्टेटस क्वो: विवादित भूमि पर यथास्थिति (Status Quo) बनाए रखने के आदेश दिए गए हैं, यानी कोई बिक्री, हस्तांतरण या थर्ड पार्टी अधिकार नहीं बनाए जा सकते।
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कब्ज़ा: आवासीय मकानों को छोड़कर खाली पड़ी भूमि पर वन विभाग और कलेक्टर तत्काल कब्ज़ा लेंगे।
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नया निर्माण निषेध: इन जमीनों पर कोई नया निर्माण नहीं होगा।
📜 ‘जंगल में लूट का खेल’: मामले की पृष्ठभूमि
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मूल मामला: यह मामला 1950 का है, जब ऋषिकेश की पशुलोक सेवा समिति को भूमिहीनों के लिए ज़मीन लीज पर दी गई थी।
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हड़प: 1984 में समिति ने 594 एकड़ ज़मीन वापस की, लेकिन बाकी ज़मीन पर निजी कब्ज़े बने रहे।
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कोर्ट का आक्रोश: सीजेआई ने कहा कि “हजारों एकड़ वन भूमि आंखों के सामने हड़पी जा रही है, फिर भी उत्तराखंड राज्य और उसके अधिकारी मूक दर्शक बने रहे,” यह बात कोर्ट को चौंकाने वाली लगती है।
🌍 मामला खतरनाक क्यों?
यह मामला इसलिए खतरनाक है क्योंकि:
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उत्तराखंड में पहले से ही वन आवरण कम हो रहा है।
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ऐसे बड़े पैमाने पर अतिक्रमण से जंगल सिकुड़ते हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं को बढ़ावा मिलता है।
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यह वन अतिक्रमण भूस्खलन, बाढ़ और जैव विविधता को भारी नुकसान पहुंचा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को अनीता कंडवाल की याचिका पर विचार करते हुए स्वतः संज्ञान मामले के तौर पर आगे बढ़ाया है। मामले की अगली सुनवाई 5 जनवरी 2026 को तय की गई है।
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