देहरादून: उत्तराखंड मंत्रिमंडल ने रविवार को अल्पसंख्यक शिक्षा विधेयक 2025 को मंजूरी दे दी है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में हुई बैठक में यह निर्णय लिया गया। यह विधेयक मंगलवार से शुरू हो रहे राज्य विधानसभा के मानसून सत्र में पेश किया जाएगा। माना जा रहा है कि यह नया विधेयक लागू होने पर मौजूदा उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2016 को निरस्त कर दिया जाएगा।
विधेयक के मुख्य प्रावधान और उद्देश्य
इस विधेयक का उद्देश्य राज्य में मुस्लिम समुदाय के साथ-साथ सिख, जैन, ईसाई और पारसी समुदायों द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्थानों को भी अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान का दर्जा देना है। विधेयक में एक नए प्राधिकरण के गठन का भी प्रावधान है, जो इन संस्थानों को मान्यता देगा। इस प्राधिकरण का मुख्य कार्य अल्पसंख्यक बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करना और उनके शैक्षणिक विकास को बढ़ावा देना होगा। विधेयक के नियमों का उल्लंघन या धन के दुरुपयोग की स्थिति में किसी भी संस्थान की मान्यता समाप्त की जा सकती है।
कांग्रेस और मदरसा बोर्ड की प्रतिक्रियाएं
- पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत (कांग्रेस): उन्होंने इस फैसले की आलोचना करते हुए भाजपा की सोच को “कूप मंडूक” (सीमित ज्ञान वाला) बताया। रावत ने सवाल उठाया कि जब मदरसों का इतिहास स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा है, तो उन्हें ‘मदरसा’ जैसे उर्दू शब्दों से परहेज क्यों है? उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरकार का इरादा मदरसों को खत्म करने का है।
मदरसा बोर्ड अध्यक्ष मुफ्ती शमून कासमी: उन्होंने इस विधेयक का स्वागत किया। मुफ्ती कासमी ने कहा कि यह फैसला सभी अल्पसंख्यक समुदायों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दिलाने में मदद करेगा और इससे धार्मिक शिक्षा पर कोई असर नहीं पड़ेगा।



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