देहरादून: उत्तराखंड सरकार ने राज्य में धर्मांतरण के बढ़ते मामलों को देखते हुए धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 2018 में एक बार फिर संशोधन किया है। इस नए संशोधन को विधानसभा में पारित कर दिया गया है, जिसके बाद अब यह कानून पहले से भी अधिक सख्त हो गया है।
कानून में किए गए प्रमुख संशोधन
नए संशोधन के तहत, डिजिटल माध्यम से धर्मांतरण कराने वालों पर भी कानूनी शिकंजा कसा जा सकेगा। कानून को और सख्त बनाते हुए सजा और जुर्माने में भी भारी वृद्धि की गई है:
- सजा: अधिकतम सजा 14 साल से बढ़ाकर आजीवन कारावास तक की गई है।
- जुर्माना: जुर्माने की राशि ₹50 हजार से बढ़ाकर अधिकतम ₹10 लाख कर दी गई है।
- संपत्ति की कुर्की: धर्मांतरण जैसे अपराध से अर्जित की गई संपत्ति को जब्त करने का भी प्रावधान किया गया है। इसका अधिकार जिलाधिकारी को दिया गया है।
अपराध की परिभाषा का विस्तार
संशोधित कानून में ‘प्रलोभन’ की परिभाषा को और व्यापक किया गया है। अब निम्न कार्य भी अपराध की श्रेणी में आएंगे:
- डिजिटल माध्यम सहित किसी भी तरीके से धर्म परिवर्तन के लिए उकसाना या षड्यंत्र करना।
- विवाह के उद्देश्य से अपनी पहचान या धर्म छिपाना।
- अनुचित लाभ के लिए धोखा देना या गलत पहचान का इस्तेमाल करना।
- एक धर्म का दूसरे के खिलाफ महिमामंडन करना।
पीड़ितों के लिए भी नए प्रावधान
कानून में पीड़ितों की सुरक्षा के लिए भी नए प्रावधान जोड़े गए हैं। अब पीड़ितों को कानूनी सहायता, रहने की जगह, भरण-पोषण और चिकित्सा जैसी सुविधाएं दी जाएंगी। पीड़ितों की पहचान और नाम भी गुप्त रखा जाएगा, जिसके लिए सरकार एक विशेष योजना भी बनाएगी। यह विधेयक अब राज्यपाल की मंजूरी के बाद अधिनियम के रूप में लागू हो जाएगा।



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