BJP को कमल का निशान देने वाले ‘बाबा’ का निधन, शोक की लहर में डूबी भाजपा

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गुरुवार को पूर्व मंत्री सह बोकारो के पूर्व विधायक समरेश सिंह का निधन सेक्टर 4 सिटी सेंटर स्थित आवास में हो गया. वह बीमार चल रहे थे. दो दिन पहले ही रांची के मेदांता से इलाज करा कर अपने घर लौटे थे. पूर्व मंत्री समरेश सिंह के निधन की खबर से बोकारो में शोक की लहर दौड़ गई है. समरेश सिंह के समर्थक प्‍यार से उन्‍हें दादा बाेलते थे. उनके निधन से समर्थकों के साथ साथ क्षेत्र के लोगों को गहर धक्का लगा है. समरेश सिंह के दोनों बेटे सिद्धार्थ सिंह व संग्राम सिंह और पुत्रवधु श्‍वेता सिंह व परिंदा सिंह को परिजन ढांढस बंधा रहे हैं. समरेश सिंह के बड़े पुत्र राणा प्रताप अमेरिका में रहते हैं. वो भी बोकारो पहुंचने वाले हैं. वहीं उनके आवास पर समर्थकों के अलावा लोगों की भीड़ लग गई है.झारखंड के पूर्व मंत्री सह बोकारो के पूर्व विधायक 81 वर्षीय समरेश सिंह के निधन से जिला में शोक की लहर है. समर्थक समेत अन्य गणमान्य उनके अंतिम दर्शन के लिए आवास पर जमा हो रहे हैं. बोकारो जिला के ही चंदनकियारी प्रखंड, लालपुर पंचायत स्थित देवलटांड़ गांव में समरेश सिंह का पैतृक आवास है. अंतिम संस्‍कार की प्रक्रिया वहीं पर किए जाने के आसार है. बता दें कि पूर्व मंत्री समरेश सिंह लंबे समय से बीमार चल रहे थे. पिछले महीने 12 तारीख को तबीयत अधिक बिगड़ने के बाद उन्‍हें पहले बीजीएच और फिर रांची के मेदांता में भर्ती कराया गया था. वहां करीब 15 दिन रहने के बाद 29 नवंबर को उन्हें बोकारो स्थित उनके आवास लाया गया था.

बता दें कि बोकारो से पूर्व विधायक समरेश सिंह भाजपा के संस्थापक सदस्यों में से एक रहे हैं. 1977 में पहली बार बोकारो विधानसभा से समरेश सिंह ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीत हासिल की. इसके बाद मुंबई में 1980 में आयोजित भाजपा के प्रथम अधिवेशन में कमल निशान का चिह्न रखने का सुझाव समरेश सिंह ने दिया था, जिसे केंद्रीय नेताओं ने अपनी मंजूरी दी थी. समरेश सिंह को 1977 चुनाव में कमल निशान पर ही जीत मिली थी. इसके बाद समरेश भाजपा से 1985 व 1990 में बोकारो से विधायक निर्वाचित हुए. इससे पहले 1985 में सिंह ने इंदर सिंह नामधारी के साथ मिलकर भाजपा में विद्रोह कर 13 विधायकों के साथ संपूर्ण क्रांति दल का गठन किया लेकिन इसके कुछ ही दिन के बाद संपूर्ण क्रांति दल का विलय भाजपा में कर दिया गया. 1995 में समरेश सिंह को भाजपा से टिकट नहीं मिला तो वो निर्दलीय चुनाव लड़े और हार गए. झारखंड अलग राज्‍य बनने पर 2000 का चुनाव उन्होंने झारखंड वनांचल कांग्रेस के टिकट पर लड़ा. झारखंड बनने के बाद वह राज्य के प्रथम विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री नियुक्‍त किए गए थे. फिर 2009 में झाविमो के टिकट पर विधायक बने. आखिर में उन्होंने 2014 में लोकसभा चुनाव में झाविमो के टिकट पर हाथ आजमाये थे लेकिन यहां उन्हें शिकस्त मिली. भले ही वो राजनीति के मैदान से दूर हो गए लेकिन जमीन से वो कभी भी दूर नहीं हुए, उनके समर्थकों और अपने क्षेत्र के लोगों में उनकी एक अलग ही छवि हमेशा बनी रही.